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Sunday, 10 July 2022

यकीन


हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

वीथिकाएं, बिखरी यादों की भुजाएं,
बीते, उन पलों के, हर लम्हे,
उस ओर, बुलाए!
वही, ऊंचे, दरक्तों के साए,
मौसम, पतझड़ के,
जिन पर,
बे-वक्त, उभर आए!

हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

बह चले धार संग, इस उम्र के सहारे,
रह गए खाली, बेपीर किनारे,
उस ओर, पुकारे,
कौन सुने, ये मौन भरमाए,
वो खामोश दिशाएं,
रह-रह,
अनबुझ, गीत सुनाए!

हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

पूछे पता, दरक्तों से घिरी ये वीथिका,
दे इक छुवन, वो कौन गुजरा,
ये किसका, पहरा,
बंधा कर आस, छल जाए,
वो उनके ही साए,
खींच लाए,
भरमाए, संग बिठाए! 

हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 18 March 2022

रंग

कुछ रंग ही तो, भरे थे हमनें,
तुम्हारी मांग में,
और तुमने, रंग डाले,
सारे, सपने मेरे!

और, आज भी, दैदिप्य सा है,
तुम्हारे भाल पर,
सफेद, बालों के मध्य,
वही, लाल रंग!

और इधर! चुप, मंत्र-मुग्ध मैं,
ताकूँ, वो ही रंग,
बिखरे, जो यकीन बन,
जिंदगी में, मेरे!

कुछ रंग ही तो, भरे थे हमनें,
बुने, कुछ ख्वाब,
और तुमने, रंग डाले,
सारे, ख्वाब मेरे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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परिकल्पनाओं में पलते, सारे रंग,
उम्र भर, रहें आप संग।।।

होली की अशेष शुभकामनाओं सहित.......

Tuesday, 23 August 2016

यकीन की हदों के उस पार

यकीन की हदों के उस पार.....

दोरुखें जीवन के रास्ते, यकीन जाए तो किधर,
कुछ पल चला था वो, साथ मेरे मगर,
अब बदलते से रास्तों में छूटा है यकीन पीछे,
भरम था वो मेरे मन का, चलता वो साथ कैसे,
हाँ भटकती यकीन कितनी? हदों के उस पार......

दूसरा ही रुख जिन्दगी का यकीन के उस पार,
टूटते हैं जहाँ, सपनों के विश्वास की दीवार,
रंगतें चेहरों के बिखर कर मिटते हैं जहाँ,
शर्मशार होता है यकीन, खुद अपनी अक्श से ही,
हाँ बिलखती यकीन कितनी? हदों के उस पार......

हदें यकीन की हैं कितनी छोटी,
बढ़ते कदम जिन्दगी के, आ पहुँचे हैं यकीन के पार,
भीगी सी अब हैं आँखें, न ही यकीं पे एतबार,
बेमानी से पलते रिश्ते, झूठा सा है सबका प्यार,
हाँ छोटी सी है यकीन कितनी? हदों के उस पार......