कुछ पूछे बिन लौट आता है, मन बार-बार....
पलते हैं इस मन शंका हजार,
मन को घेरे हैं संशय, कर लेता हूं विचार!
क्या सोचेंगे वो! क्या समझेंगे वो?
क्या होगा उनका व्यवहार?
गर, मन की वो बातें, रख दूं उतार!
फिर, लाखों संशय से मन घिर जाता है!
डरता है, घबराता है, सकुचाता है.....
जाता है उन राहों पे हर-बार....
कुछ पूछे बिन लौट आता है, मन बार-बार....
फिर करता हूं मन को तैयार,
संशय में जीता, संशय में मरता हूं यार?
क्या संशय में मिल पाएंगे वो?
क्या यह संशय है बेकार?
या त्याग दूं संशय, हो जाऊँ बेजार!
फिर, संशय की बूंदों से मन घिर जाता है!
भीगता है, रुकता है, फिर चलता है...
जाता है भीगी राहों पे हर-बार....
कुछ पूछे बिन लौट आता है, मन बार-बार....
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