Saturday, 12 May 2018

क्या हो तुम

क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो....

क्यूं मैं हूं, इक तुम्हारे ही आस में?
कभी कुछ पल जो आओ अंकपाश में,
बना लूं वो ही लम्हा खास मैं,
भूल जाऊँ मैं खुद को, कुछ पल तुम्हारे साथ में...

हो सुबह या सघन रात हो,
सांझ हो या प्रभात हो,
धूप या बरसात हो,
या चुप सी कोई बात हो,
जो भी हो, तुम लाजबाब हो...

क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो....

हो बेहोश या मदहोश हो,
मूरत सी खामोश हो,
चटकती कली हो,
या बंद लफ्जों में ढ़ली हो,
जो भी हो, तुम लाजबाब हो...

क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो....

यूं जेहन में आ बसी हो,
खुश्बुओं में रची हो,
या रंगों में ढ़ली हो,
क्या बस इक ख्वाब हो,
जो भी हो, तुम लाजवाब हो...

क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो....

तन्हा पलों की संगिनी हो,
जैसे कोई रागिनी हो,
कूक कोयल की हो,
दूर से आती आवाज हो,
जो भी हो, तुम लाजवाब हो...

क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो....

स्नेह की कोई लड़ी हो,
या चहकती सी परी हो,
सहज हो शील हो,
या खुदा का आब हो,
जो भी हो, तुम लाजबाब हो...

क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो....

क्यूं मैं हूं, इक तुम्हारे ही आस में?
कभी कुछ पल जो आओ अंकपाश में,
बना लूं वो ही लम्हा खास मैं,
भूल जाऊँ मैं खुद को, कुछ पल तुम्हारे साथ में...

क्या हो तुम? क्यूं आते हर पलों में याद हो....

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