छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
वो जो कहते थे, बस हम है तुम्हारे,
सिर्फ हम थे कभी, जिनकी आँखों के तारे,
करार वो ही मन के, ले गए हैं सारे,
इन बेकरारियों में जीवन, कोई कैसे गुजारे?
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
चीज अनमोल ये, मैं कहाँ से पाऊँ,
चैन! वस्तु नहीं कोई, जो मैं खरीद लाऊँ,
पर जिद्दी ये मन मेरा, इसे कैसे बताऊँ,
छीना है जिसने करार, मन उसे ही पुकारे!
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
कोई पुतला नहीं, इक जीव हूं संजीदा,
उमरती हैं भावनाएँ, न ही इसे हमने खरीदा,
वश भावनाओं पर, कहाँ है किसी का?
इन्हीं भावनाओं के हाथो, ये मन बिका रे!
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
सोचा था, न जाऊंगा मैं फिर उस तरफ,
कदमताल करता है मन, हरदम उसी तरफ,
कदमों को रोककर, समझाता हूं मैं,
मगर वश में मेरा मन, अब रहा ही कहाँ रे!
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
वो जो कहते थे, बस हम है तुम्हारे,
सिर्फ हम थे कभी, जिनकी आँखों के तारे,
करार वो ही मन के, ले गए हैं सारे,
इन बेकरारियों में जीवन, कोई कैसे गुजारे?
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
चीज अनमोल ये, मैं कहाँ से पाऊँ,
चैन! वस्तु नहीं कोई, जो मैं खरीद लाऊँ,
पर जिद्दी ये मन मेरा, इसे कैसे बताऊँ,
छीना है जिसने करार, मन उसे ही पुकारे!
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
कोई पुतला नहीं, इक जीव हूं संजीदा,
उमरती हैं भावनाएँ, न ही इसे हमने खरीदा,
वश भावनाओं पर, कहाँ है किसी का?
इन्हीं भावनाओं के हाथो, ये मन बिका रे!
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
सोचा था, न जाऊंगा मैं फिर उस तरफ,
कदमताल करता है मन, हरदम उसी तरफ,
कदमों को रोककर, समझाता हूं मैं,
मगर वश में मेरा मन, अब रहा ही कहाँ रे!
छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....
No comments:
Post a Comment