Monday, 6 August 2018

द्वितीय संस्करण

सम्भव होता गर जीवन का द्वितीय संस्करण,
समीक्षा कर लेता जीवन की भूलों का,
फिर जी लेता इक नव-संस्करित जीवन!

क्या मुमकिन है ये द्वितीय संस्करण?

नए सिरे से होता, तब रिश्तों का नवीकरण,
परिमार्जित कर लेता मैं अपनी भाषाएं,
बोली की कड़वाहट का होता शुद्धिकरण!

क्या मुमकिन है ये द्वितीय संस्करण?

संस्कारी प्रवृत्तियों का करता मैं नव-उद्बोधन,
समूल नष्ट कर देता असंस्कारी अवयव,
कर लेता उच्च मान्यताओं का मैं संवर्धन।

क्या मुमकिन है ये द्वितीय संस्करण?

विसंगतियों से पृथक होता ये जीवन-दर्शन!
कर्मणा-वाचसा न होते विभिन्न परस्पर,
वैचारिक त्रुटियों का कर लेता निराकरण!

क्या मुमकिन है ये द्वितीय संस्करण?

परन्तु, प्रथम और आखिरी है यही संस्करण,
द्वितीय संस्करण इक कोरी सी कल्पना ,
अपनी जिम्मेदारी है यही प्रथम संस्करण!

बस नामुमकिन है ये द्वितीय संस्करण?

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