Wednesday, 22 August 2018

अब कहाँ कोई सदा

अब कहाँ है कोई सदा, जो फिर से पुकारता.....

वो मृदु भाव कहाँ,
है कहाँ अब वो मृदुल कंठ,
पुकार ले जो स्नेह से,
है कहाँ अब वो कोकिल से कंठ...

वो सुख-चैन कहाँ,
कहाँ है अब वो सुखद आँखें,
मुड़कर जो दे सदाएं,
है कहाँ अब वो बोलती निगाहें...

अब वो नैन कहाँ,
जो पिघला दे रीतकर पत्थर,
कर जाए भाव प्रवण,
है कहाँ अब वो भाव निर्झर...

अब न है वो सदाएं,
सूनी सी है अब मेरी पनाहें,
है सुनसान सा वो डगर,
और है उधर ही मेरी निगाहें....

वियावान हुई हैं राहें!
या, वो आवाज है बेअसर!
मन कलपता है कहीं!
या मन बन चुका है पत्थर...

अब कहाँ है कोई सदा, जो फिर से पुकारता.....

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