Saturday, 8 December 2018

परिहास

माना भारी है परिवर्तन का यह क्षण,
सुर विहीन अभी है जीवन,
ये सम पर फिर से आएंगी, तुम विश्वास करो,
ना इन पर, तुम परिहास करो.....

मेरे सपनों में, तुम भी अपना विश्वास भरो,
ना मुझ पर, तुम परिहास करो.....

नई कोपलें फिर आएंगी,
ये ठूंठ वृक्ष,
नग्न डालियाँ,
पीले से बिखरे पत्ते सारे,
सब हैं...
उस पतझड़ के मारे,
ना इन पर उपहास करो....
तुम विश्वास भरो...

ना इन पर, तुम परिहास करो.....

संसृति मृत होती नहीं,
ना ही घन,
ना ये नदियाँ,
ना ही मिटते नभ के तारे,
सब हैं...
इस मौसम के मारे,
ना इन पर उपहास करो
तुम विश्वास भरो...

जारी है ऋतुओं का क्रमिक अनुवर्तन,
रंग विहीन अभी है जीवन,
ये फिर रंगों में रंग जाएगी, तुम विश्वास करो,
ना इन पर, तुम परिहास करो.....

मेरे सपनों में, तुम भी अपना विश्वास भरो,
ना मुझ पर, तुम परिहास करो.....

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