Saturday, 11 May 2019

मशकूक

तन के कंपन, ये हृदय के स्पंदन,
है उनके ही कारण....

हम तो बस, मशकूक हैं,
निशाने, उनकी नजर के अचूक हैं,
उनके ही मकरूक हैं,
उनकी ही, ख्वाब में मशरूफ हैं,
महसूस करता हूँ, मैं अपनी धड़कन,
उनके ही कारण....

हर तरफ, हैं उनके नजारे,
बन कर पवन, छू ले, वो ही पुकारे,
वहाँ, जो वो न होते,
न होते, स्पंदन उन वादियों में, 
धड़कती है ये धड़कनें, गूंज बनकर,
उनके ही कारण.....

नेकियां, सब उसने किए,
यहाँ मशकूक तो, बस हम ही हुए,
पहले थे गुमनाम हम,
चर्चे मेरी नाम के, अब आम हैं,
नजर में उनकी भी, हम बदनाम हैं,
उनके ही कारण....

तन के कंपन, ये हृदय के स्पंदन,
है उनके ही कारण....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

8 comments:


  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-05-2019) को

    "मातृ दिवस"(चर्चा अंक- 3333)
    पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

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  2. सुन्दर रचना

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    1. सराहना के लिए शुक्रिया आदरणीय ओंकार जी।

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  3. लाज़बाब ..... ,सादर नमन

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    1. इस विशेष रचना पर प्रतिक्रिया हेतु शुक्रिया । धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।

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  4. प्रेम के रंगों को अनोखे रंग दिए हैं ...
    बहुत सुन्दर रचना ...

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