Saturday, 25 May 2019

अधूरे ख्वाब

सत्य था, या झूठ था, तलाश बस वो एक था,
द्वन्द के धार मे, नाव बस एक था,
वही प्रवाह है, वही दोआब है....

संदली राह, मखमली चाह, मदभरी निगाह है,
अनबुझ सी, वही इक प्यास है,
अधूरा सा है, वही ख्वाब है...

बुन लाता ख्वाब सारे, चुन लाता मैं वही तारे,
बस, स्याह रातों सा हिजाब है,
बवंडर सा है, इक सैलाब है...

यूँ ही रहे गर्दिशों में, बेरहम वक्त के रंजिशो में,
उभरते से रहे, वो ही तस्वीरों में,
एक अक्श है, वही निगाह है....

जल जाते हैं वो, जुगनुओं सा चिराग बनकर,
उभर आते हैं, कोई याद बन कर,
एक जख्म है, वही रिसाव है...

वक्त के इस मझधार में, पतवार बस एक था,
उफनती धार में, नाव बस एक था,
वो ही भँवर है, वही प्रवाह है....

सत्य था, या झूठ था, तलाश बस वो एक था,
द्वन्द के धार मे, नाव बस एक था,
वही प्रवाह है, वही दोआब है....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

10 comments:

  1. जल जाते हैं वो, जुगनुओं सा चिराग बनकर,
    उभर आते हैं, कोई याद बन कर,
    एक जख्म है, वही रिसाव है... बेहतरीन रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26 -05-2019) को "मोदी की सरकार"(चर्चा अंक- 3347) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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  3. सुंदर रचना kp भाई मन के द्वंद्व को खूबसूरती से उभारा है आपने . कृपया अन्यथा न लें. कुछ त्रुटि रह गई है (नाव और पतवार स्त्रीलिंग है) यदि ठीक लगे तो शुध्द कर लें. 🙏 सादर

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    1. बहन सुधा, ऐसा जानबूझकर तुकान्तमकता बनाए रखने हेतु किया गया है।
      आशा है,सही लगे।
      बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  4. बहुत खूब पुरुषोत्तम जी !!

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