Sunday, 8 December 2019

एक लम्हा नहीं

एक लम्हा नहीं, उम्र भर की है ये बात,
तेरी मेरी, अनकही सी है ये बात!

तुझ में कहीं, करता हूँ खुद की तलाश,
गुजरा था कहीं, तुझ से ही होकर,
परवाह किसे, थी कहाँ राहों में ठोकर!
रोक लेते, तुम एक पल ही काश,
समेट लाता, मैं अधूरा सा ये आकाश!

सपने ही रहे, थी जो सपनों की बात,
तेरी मेरी, अनकही सी है ये बात!

सब कुछ तो है, पर कहीं कुछ भी नहीं,
हर रंग में है, उस रंग की ही कमी,
खोई है महफिल, खामोश है ये गजल!
धुन कोई, छेड़ देते तुम जो काश,
सज ही उठते तराने, गूँजते ये आकाश!

थमा सा है लम्हा, थमी सी है ये बात,
तेरी मेरी, अनकही सी है ये बात!

हर शै में है, इक तेरे झलक की कमी,
सूनी हैं पलकें, आँखों में है नमीं,
हो चला है बोझिल, लम्हों का सफर!
होते जो हमसफर, तुम ही काश,
समेट लाता, मैं अधूरा सा ये आकाश!

एक लम्हा नहीं, उम्र भर की है ये बात,
तेरी मेरी, अनकही सी है ये बात!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं…
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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