दुग्ध रौशन,
मुग्ध मंद पवन,
रुग्ध ये मन!
बहकी घटा,
हलकी सी छुवन,
गुम ये मन!
खिलती कली,
हिलती डाल-डाल,
क्षुब्ध ये मन!
सुरीली धुन,
फिर वो रूनझुन,
डूबोए मन!
बहते नैन,
पल भर ना चैन,
करे बेचैन!
गाती कोयल,
भाए न इक पल,
करे बेकल!
वही आहट,
वो ही मुस्कुराहट,
भूले न मन!
खुद से बातें,
खुद को समझाते,
रहे ये मन!
अंधेरी रातें,
फिर वो सौगातें,
ढ़ोए ये मन!
ना कोई कहीं,
कहें किस से हम,
रोए ये मन!
दुग्ध रौशन,
मुग्ध मंद पवन,
रुग्ध ये मन!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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हाइकु - कविता की एक ऐसी विधा, जिसकी उत्पत्ति जापान में हुई और जिसके बारे में आदरणीय रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने कहा कि "एइ कवितागुलेर मध्ये जे केवल वाक्-संयम ता नय, एर मध्ये भावेर संयम।" अर्थात, यह सिर्फ शब्द संयोजन नहीं, इसके मध्य एक भाव संयोजन है।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 11 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद दी।
Deleteवही आहट,
ReplyDeleteवो ही मुस्कुराहट,
भूले न मन!
सच में अत्यंत भावपूर्ण सृजन,
वैसे तो आपकी सभी रचनाएँ ही लाजवाब होती हैं,
परंतु यहाँ तो गागर में सागर वाली उक्ति है।
सादर नमन।
आदरणीय शशि जी, आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए संजीवनी समान है। बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत सुंदर आपकी यह रचना हाइकु
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया । आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2020) को "भारत में जनतन्त्र" (चर्चा अंक -3609) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय मयंक जी।
Deleteभावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteसादर ।
सादर आभार पल्लवी जी। स्वागत है आपका।
Deleteबहते नैन,
ReplyDeleteपल भर ना चैन,
करे बेचैन
बहुत सुंदर..... सादर नमन आपको
हार्दिक आभार आदरणीया कामिनी जी।
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