दुग्ध रौशन,
मुग्ध मंद पवन,
रुग्ध ये मन!
बहकी घटा,
हलकी सी छुवन,
गुम ये मन!
खिलती कली,
हिलती डाल-डाल,
क्षुब्ध ये मन!
सुरीली धुन,
फिर वो रूनझुन,
डूबोए मन!
बहते नैन,
पल भर ना चैन,
करे बेचैन!
गाती कोयल,
भाए न इक पल,
करे बेकल!
वही आहट,
वो ही मुस्कुराहट,
भूले न मन!
खुद से बातें,
खुद को समझाते,
रहे ये मन!
अंधेरी रातें,
फिर वो सौगातें,
ढ़ोए ये मन!
ना कोई कहीं,
कहें किस से हम,
रोए ये मन!
दुग्ध रौशन,
मुग्ध मंद पवन,
रुग्ध ये मन!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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हाइकु - कविता की एक ऐसी विधा, जिसकी उत्पत्ति जापान में हुई और जिसके बारे में आदरणीय रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने कहा कि "एइ कवितागुलेर मध्ये जे केवल वाक्-संयम ता नय, एर मध्ये भावेर संयम।" अर्थात, यह सिर्फ शब्द संयोजन नहीं, इसके मध्य एक भाव संयोजन है।