गुजर सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, सँवर सा गया हूँ?
बसंत के ये, दरख्त जैसे!
कई रंग, अंग-अंग, उभरने लगे,
चेहरे, जरा सा, बदलने लगे,
शामिल हुई, अंतरंग सारी लिखावटें,
पड़ने लगी, तंग सी सिलवटें,
उभर सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, निखर सा गया हूँ?
कभी था, अव्यक्त जैसे!
बसंत के ये, खिले से दरख्त जैसे!
ये सांझ, धूमिल होने को आए,
जैसे, हर-पल, कोई बुलाए,
हासिल हुई, पनपती थी जो हसरतें
हुई खत्म, सारी शिकायतें,
अदल सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, बदल सा गया हूँ?
ना हूँ मैं, आश्वस्त जैसे!
बसंत के ये, खिले से दरख्त जैसे!
दुलारे लगे, ऋतुओं के नजारे,
नदी के, दो बहते से धारे,
ओझल हुई, नजरों से वो नाव अब,
दिखने लगा, वो गाँव अब,
पिघल सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, उबल सा गया हूँ?
नसों में, बहे रक्त जैसे!
बसंत के ये, खिले से दरख्त जैसे!
गुजर सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, सँवर सा गया हूँ?
बसंत के ये, दरख्त जैसे!
-------------------------------------------------
"बसंत के दरख्त" (भाग-2) इस लिंक पर पढ़ें "बसंत के दरख्त-2"
"बसंत के दरख्त" (भाग-2) इस लिंक पर पढ़ें "बसंत के दरख्त-2"
---------‐----------------------------------
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 02 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया दी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(0२-०२-२०२०) को "बसंत के दरख्त "(चर्चा अंक - ३५९९) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
सादर आभार आदरणीया।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहमेशा प्रेरित करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा चौहान जी।
Deleteरास्ते के बीचों बिच की बैचेनी या कसमकस है ये कविता.
ReplyDeleteवाह.
पुनः आभार आदरणीय रोहितास जी।
Deleteदुलारे लगे, ऋतुओं के नजारे,
ReplyDeleteनदी के, दो बहते से धारे,
ओझल हुई, नजरों से वो नाव अब,
दिखने लगा, वो गाँव अब,
पिघल सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, उबल सा गया हूँ?
नसों में, बहे रक्त जैसे!
बसंत सी निखरी सजी संवरी अप्रतिम रचना...
वाह!!!
आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्न हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुधा देवरानी जी ।
Deleteबेहद सुन्दर भाव संयोजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी ।
Delete