नीरवता! ठहरी क्यूँ है रात भर?
है कैसी, ये कोशिशें?
असंख्य तारे, टंके आसमां पर,
कर कोशिशें, लड़े अंधेरों से रात भर,
रहे जागते, पखेरू डाल पर,
उड़ना ही था, उन्हें हर हाल पर,
चाहे, करे कोशिशें,
अंधेरे, रुकने की रात भर!
नीरवता! ठहरी क्यूँ है रात भर?
है कैसी, ये कोशिशें?
ठहर जा, दो पल, ऐ चाँद जरा,
अंधेरे हैं घने, तू लड़, कुछ और जरा,
भुक-भुक सितारों, संग खड़ा,
हो मंद भले, तेरे दामन की रौशनी,
पर, तू है चाँदनी,
कोशिशें, कर तू रात भर!
नीरवता! ठहरी क्यूँ है रात भर?
है कैसी, ये कोशिशें?
यूँ जारी हैं, हमारी भी कोशिशें,
जलाए हमने भी, उम्मीदों के दो दीये,
लेकिन भारी है, इक रात यही,
व्याप्त निशा, नीरवता ये डस रही,
बुझने, ये दीप लगी,
करती कोशिशें, रात भर!
नीरवता! ठहरी क्यूँ है रात भर?
है कैसी, ये कोशिशें?
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 14 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteउम्मीद जिंदा रखें
ReplyDeleteकोशिशें जारी रहे।
उम्दा उम्दा उम्दा रचना।
आइयेगा- प्रार्थना
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१६ -0२-२०२०) को 'तुम्हारे मेंहदी रचे हाथों में '(चर्चा अंक-१३३६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी ।
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी
Deleteउम्मीद जगाना जरूरी है
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
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