मन चाहे, जी लूँ दोबारा!
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
संदर्भ नए, फिर लिख डालूँ,
नजर, विकल्पों पर फिर से डालूँ,
कारण, सारे गिन डालूँ,
हारा भी, तो मैं,
क्यूँ हारा?
मन चाहे, जी लूँ दोबारा!
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
खोए से वो पल, दोहरा लूँ,
जीवन से, बिखरे लम्हे पा डालूँ,
मोती, बिखरे चुन डालूँ,
बिखरा तो, वो पल,
क्यूँ बिखरा?
मन चाहे, जी लूँ दोबारा!
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
ख्वाब अधूरे, चाहत के सारे,
जीवन के, भटकावों से हम हारे,
खुद को ही, समझा लूँ,
ठहरा भी, तो मैं,
क्यूँ ठहरा?
मन चाहे, जी लूँ दोबारा!
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
संदर्भ नए, फिर लिख डालूँ,
नजर, विकल्पों पर फिर से डालूँ,
कारण, सारे गिन डालूँ,
हारा भी, तो मैं,
क्यूँ हारा?
मन चाहे, जी लूँ दोबारा!
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
खोए से वो पल, दोहरा लूँ,
जीवन से, बिखरे लम्हे पा डालूँ,
मोती, बिखरे चुन डालूँ,
बिखरा तो, वो पल,
क्यूँ बिखरा?
मन चाहे, जी लूँ दोबारा!
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
ख्वाब अधूरे, चाहत के सारे,
जीवन के, भटकावों से हम हारे,
खुद को ही, समझा लूँ,
ठहरा भी, तो मैं,
क्यूँ ठहरा?
मन चाहे, जी लूँ दोबारा!
जीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीय दिग्विजय जी, आभारी हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteसार्थक लेखन।
ReplyDeleteआदरणीय मयंक जी, आभारी हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteआदरणीय जोशी जी, आभारी हूँ । बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteमन चाहे, जी लूँ दोबारा!
ReplyDeleteजीत लूँ सब, जो जीवन से हारा!
संदर्भ नए, फिर लिख डालूँ,
नजर, विकल्पों पर फिर से डालूँ,
कारण, सारे गिन डालूँ,
हारा भी, तो मैं,
क्यूँ हारा?
शायद सब की दबी हुई इच्छाएं आपने जागृत कर दी... बहुत बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति 👏 👏 👏 👏
धन्यवाद सुधा बहन।
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