Saturday, 18 July 2020

बंजारे ख्वाब

सिमट रहे, ये दलीचे उम्र के,
ख्वाब कोई, अब, आए ना मुड़ के!

मन के फलक, धुंधलाए हैं, हल्के-हल्के,
दूर तलक, साए ना कल के,
सांध्य प्रहर, कहाँ किरणों का गुजर,
बिखरे हैं, टूट कर ख्वाब कई,
रख लूँ चुन के!

सिमट रहे, ये दलीचे उम्र के,
ख्वाब कोई, अब, आए ना मुड़ के!

हम-उम्र कोई होता, तो ख्वाब पिरो लेता,
पर, ख्वाबों के ये उम्र नहीं,
संजोये ख्वाब कोई, वो हम-उम्र नहीं,
छलके हैं, रख लूूँ ख्वाब वही,
आँखों में भर के!

सिमट रहे, ये दलीचे उम्र के,
ख्वाब कोई, अब, आए ना मुड़ के!

पर, ख्वाबों के वो तारे, हो चले हैं बंजारे,
थे कल तक, जो नैन किनारे,
छोड़ चले हैं वो, इस मझधार सहारे,
रहते है, जो अब भी साथ यहीं,
बेगाने से बन के!

सिमट रहे, ये दलीचे उम्र के,
ख्वाब कोई, अब, आए ना मुड़ के!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 18 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. Replies
    1. आभारी हूँ आदरणीय । यूँ ही प्रेरित करते रहें।

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  3. बहुत सुंदर बहुत खूब
    आपकी रचनाएं बहुत खुबसरत है
    हाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरी कविताओं को पढ़े और मुझे सही दिशा निर्देश दे
    https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
    धन्यवाद

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद दीशु जी।

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    2. आपका ब्लॉग पढ सका। बहुत ही अच्छी है आपकी कृतियाँ। कोशिशें जारी रखें। माँ सरस्वती की कृपा आप पर बनी रहे।

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    3. मात्रा संबंधित कुछ त्रुटियाँ अवश्य ध्यान देने योग्य हैं।

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  4. This comment has been removed by the author.

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