Wednesday, 8 July 2020

तुम न बदले

धुंधले हुए, स्वप्न बहुतेरे,
धुंधलाए,
नयनों के घेरे,
धुंधला-धुंधला, हर मौसम,
जागा इक, चेतन मन!
मौन अपनापन,
वो ही,
सपनों के घेरे!

धूमिल, प्रतिबिम्बों के घेरे,
उलझाए,
उलझी सी रेखाएं,
बदलते से एहसासों के डेरे,
अल्हड़, वो ही मन,
तेरा अपनापन,
तेरे ही,
ख्यालों के घेरे!

बदली छवि, तुम न बदले,
तुम ही भाए,
अश्रुसिक्त हो आए,
ज्यूँ सावन, घिर-घिर आए,
भिगोए, ये तन-मन,
वो ही छुअन,
वो ही,
अंगारों के घेरे!

अंतर्मन, सोई मौन चेतना,
जग आए,
दिखलाए मुक्त छवि,
लिखता जाए, स्तब्ध कवि,
करे शब्द समर्पण,
संजोए ये मन,
तेरे ही,
रेखाओं के घेरे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 08 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. अगला विषय प्रश्न है
    कृपया तलाशें
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी रचना- "प्रश्न से परहेज"
      http://purushottamjeevankalash.blogspot.com/2018/02/blog-post_27.html?m=1

      Delete
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन रचना आदरणीय

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदयतल से आभार आदरणीया अनुराधा जी।

      Delete
  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ... हर छंद मन क भाव लिए ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय नसवा जी। आभारी हूँ।

      Delete

  6. धूमिल, प्रतिबिम्बों के घेरे,
    उलझाए,
    उलझी सी रेखाएं,
    बदलते से एहसासों के बेहतरीन काव्य

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय । आभारी हूँ।

      Delete
  7. वाह!लाजवाब सृजन ..प्रत्येक बंद निशब्द करता .
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुनीता जी। आभारी हूँ। बहुत दिनों बाद पुनः स्वागत है आपका।

      Delete
  8. बदली छवि, तुम न बदले,
    तुम ही भाए,
    अश्रुसिक्त हो आए,
    ज्यूँ सावन, घिर-घिर आए,
    भिगोए, ये तन-मन,
    वो ही छुअन,
    वो ही,
    अंगारों के घेरे!
    आदरणीय पुरुषोत्तम जी , सच कहूं ये रचना बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण लगी मुझे | किसी को ये कहना कि - तुम ना बदले - एक बहुत बड़ी कृतज्ञता और स्नेहिल भाव है | साथ ही विशवास का द्योतक भी है | प्रेम की गहन अनुभूति को उजागर करती रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं | सादर -

    ReplyDelete
    Replies
    1. शब्द कम होंगे आपकी प्रतिक्रिया पर आभार व्यक्त करने हेतु। भावों को चुनकर समेटना भी संभवन हो। बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया।

      Delete