Thursday, 10 February 2022

लता

शाख से, बिछड़ी इक लता!
कुछ तो, डालियों ने भी, की होगी खता!

यूं तो, झूलती थी वो, पवन की बांहों में,
विहँसती थी, टोककर,
उड़ते पंछियों को, उन राहों में,
मचल उठती थी, अजनबी मुसाफिरों संग,
शायद, सोचकर कि,
गुजर जाएंगे, चैन से तन्हा पल,
कुछ तो, रहबरों ने भी, की होगी खता,
टूट कर बिखरी, इक लता!

यूं तो अक्सर, लौटकर आती है बहारें,
बरस जाती है, फुहारें,
पर, खिल न सकेगी वो लता,
इस दफा, ये बागवां, पूछेंगी उनका पता,
चुप सी, रहेगी, घटा,
शायद, पतझड़ सा हो बसन्त,
कुछ तो, इन गुलों ने, की होगी खता,
टूट कर बिखरी, इक लता!

यूं तो, सितार कोई, फिर छेड़ जाएगा,
नज़्म, न होंगे बज़्म में,
न होगी, फिज़ाओं में तरंगिनि,
हर दफा, ये हवाएं, पूछेंगी उनका पता,
चुप सी, होगी, सदा,
शायद, ख़ामोश सी होगी लहर,
कुछ तो, सरगमों ने, की होगी खता,
टूट कर बिखरी, इक लता!

शाख से, बिछड़ी इक लता!
कुछ तो, डालियों ने भी, की होगी खता!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

:::::श्रद्धांजलि लता मंगेशकर दी .......

10 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
    'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. शुक्रिया आभार आदरणीया अनीता जी ।।।।

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  2. बेहद हृदयस्पर्शी सृजन।

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  3. मर्मस्पर्शी श्रद्धा के फूल.
    बधाई ! रचना बहुत पसंद आई.

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  4. भावुकता आए भरपूर ।

    अति सुंदर सृजन !!

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  5. Replies
    1. शुक्रिया आभार आदरणीया शकुन्तला जी।।।

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