क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
कहीं न कहीं,
उम्मीद तो, इक रहेगी बनी,
इक आसरा, टिमटिमाता सा, इक सहारा,
एक संबल,
कि, कोई तो है, उस किनारे!
क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
अब जो कहीं,
बिछड़ोगे, तो बिसारोगे तुम,
बंदिशों में, आ भी न पाओगे, चाहकर भी,
रखना याद,
कि, हम हैं खड़े, बांहें पसारे!
क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
झूठा ही सही,
आसरा, इक, कम तो नहीं,
टूट जाए, भले कल, कल्पना की इमारत,
पले चाहत,
कि, कोई तो है, मेरे भरोसे!
क्या, फिर मिलोगे कहीं!
समय और अनन्त के, उस तरफ ही सही!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)