बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
इधर जाइए!
यूं नाजुक, बड़े ही, ये डोर हैं,
निर्मूल आशंकाओं के, कहां कब ठौर हैं,
ढ़ल न जाए, सांझ ये,
दिये, उम्मीदों के,
इक जलाइए!
बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!
धुंधली, हो रही तस्वीर इक,
खिच रही हर घड़ी, उस पर लकीर इक,
सन्निकट, इक अन्त वो,
जश्न, ये बसन्त के,
संग मनाईए!
बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!
बिसार देगी, कल ये दुनियां,
एक अंधर, बहा ले जाएगी नामोनिशां,
सिलसिला, थमता कहां,
वक्त ये, मुकम्मल,
कर जाईए!
बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteआभार आदरणीया।।।।।
Deleteबिसार देगी, कल ये दुनियां,
ReplyDeleteएक अंधर, बहा ले जाएगी नामोनिशां,
सिलसिला, थमता कहां,
वक्त ये, मुकम्मल,
कर जाईए!
... बहुत सही बात.......
आभार आदरणीया।।।
Deleteखूबसूरत इल्तिज़ा 👌👌👌👌
ReplyDeleteआभार आदरणीया।।।।
Deleteसिलसिला, थमता कहां,
ReplyDeleteवक्त ये, मुकम्मल,
कर जाईए!
रचना की हर पंक्ति अर्थपूर्ण और सुंदर है ।
आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ....
DeleteBehtarin sir🙏
ReplyDeleteThanks
Deleteधुंधली, हो रही तस्वीर इक,
ReplyDeleteखिच रही हर घड़ी, उस पर लकीर इक,
सन्निकट, इक अन्त वो,
जश्न, ये बसन्त के,
संग मनाईए!..... हमेशा की तरह सुंदर रचना
आभार आदरणीया
Deleteजीवन के हर रंग, हर अनुभूति को आत्मसात करती हुई तथा हर राग -द्वेष को भुलाकर वर्तमान को जी भर कर जी लेने को प्रेरित करती एक बहुत ही सुंदर रचना। 🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
DeleteNice post thank you Antonio
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