Wednesday, 15 June 2022

बिसारिए ना


बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
इधर जाइए!

यूं नाजुक, बड़े ही, ये डोर हैं,
निर्मूल आशंकाओं के, कहां कब ठौर हैं,
ढ़ल न जाए, सांझ ये,
दिये, उम्मीदों के,
इक जलाइए!

बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!

धुंधली, हो रही तस्वीर इक,
खिच रही हर घड़ी, उस पर लकीर इक,
सन्निकट, इक अन्त वो,
जश्न, ये बसन्त के,
संग मनाईए!

बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!

बिसार देगी, कल ये दुनियां,
एक अंधर, बहा ले जाएगी नामोनिशां,
सिलसिला, थमता कहां,
वक्त ये, मुकम्मल,
कर जाईए!

बिसरिए ना, न बिसारने दीजिए,
गांठ, मन के बांधिए,
आ जाइए!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

17 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बिसार देगी, कल ये दुनियां,
    एक अंधर, बहा ले जाएगी नामोनिशां,
    सिलसिला, थमता कहां,
    वक्त ये, मुकम्मल,
    कर जाईए!
    ... बहुत सही बात.......

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  3. सिलसिला, थमता कहां,
    वक्त ये, मुकम्मल,
    कर जाईए!
    रचना की हर पंक्ति अर्थपूर्ण और सुंदर है ।

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    1. आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ....

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  4. धुंधली, हो रही तस्वीर इक,
    खिच रही हर घड़ी, उस पर लकीर इक,
    सन्निकट, इक अन्त वो,
    जश्न, ये बसन्त के,
    संग मनाईए!..... हमेशा की तरह सुंदर रचना

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  5. जीवन के हर रंग, हर अनुभूति को आत्मसात करती हुई तथा हर राग -द्वेष को भुलाकर वर्तमान को जी भर कर जी लेने को प्रेरित करती एक बहुत ही सुंदर रचना। 🙏

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  6. Nice post thank you Antonio

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