भोर, कहीं उस ओर!
अलसाई सी जग रही, इक किरण,
उठ रहा शोर!
उस ओर, कहीं ढ़ल रही विभा,
संतप्त पलों के, हर निशां,
बदल रही दिशा,
अब न होंगे, दग्ध ये ह्रदय,
जग उठेंगे हर शै,
हो विभोर!
भोर, कहीं उस ओर....
जिधर, कई धुंधली परछाईयां,
लेने लगी, नव अंगड़ाइयां,
जन्मी संभावनाएं,
अंकुरित हुई, कई आशाएं,
सपने पाने लगे,
नए ठौर!
भोर, कहीं उस ओर....
नयन कोटिशः, कर उठे नमन,
कर दोऊ जोड़े, हुए मगन,
जागी कण-कण,
कुसुमित हो चली, ये पवन,
उठे कदम कितने,
उसी ओर!
भोर, कहीं उस ओर!
अलसाई सी जग रही, इक किरण,
उठ रहा शोर!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
भोर की देहरी पर दस्तक देती सुंदर रचना।
ReplyDeleteजिधर, कई धुंधली परछाईयां,
ReplyDeleteलेने लगी, नव अंगड़ाइयां,
जन्मी संभावनाएं,
अंकुरित हुई, कई आशाएं,
सपने पाने लगे,
नए ठौर!
वाह!!!!
खूबसूरत भोर की मनभावन प्रस्तुति !!
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