परिंदा, मन का, पर खोले चाहे उड़ना,
रुके कहाँ, मानव की तृष्णा!
मानव की खातिर, कितना मुश्किल है खोना,
अपूरित ख़्वाहिशों का, जग उठना,
उस अनदेखे की, ख्वाहिशों संग सोना,
उनको भी, मन चाहे पा लेना,
निर्णय-अनिर्णय के, उन दोराहों पर,
ले आती है तृष्णा!
परिंदा, मन का, पर खोले चाहे उड़ना,
रुके कहाँ, मानव की तृष्णा!
मन, पाए ना राहत, जग जाए जब ये चाहत,
अन्जाने ही, मन होता जाए आहत,
भ्रम की इक, किश्ती में, वो ढूंढे राहत,
जाने, पर स्वीकारे ना ये सत्य,
चाहत के, उस अनिर्णीत दोराहों पर,
ले आती है तृष्णा!
परिंदा, मन का, पर खोले चाहे उड़ना,
रुके कहाँ, मानव की तृष्णा!
खो दे कुछ भी, उन अनिश्चितताओं के बदले,
पाना चाहे, उन इच्छाओं को पहले,
भले ही इच्छाओं को, इच्छाएं ही डस ले,
कैसी आशा, कैसा यह स्वप्न,
अंधियारे से, इक विस्तृत दोराहों पर,
ले आती है तृष्णा!
परिंदा, मन का, पर खोले चाहे उड़ना,
रुके कहाँ, मानव की तृष्णा!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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इच्छा
1. कामना, चाह, ख्वाहिश; 2. रुचि।
इक्षा
1. नज़र; दृष्टि 2. देखने की क्रिया; दर्शन 3. विचारना; विवेचन करना; पर्यालोचन।