कुछ बातें, अक्सर!
आकर, रुक जाती हैं होठों पर!
निर्बाध, समय बह चलता है,
जीवन, कब रुकता है!
खो जाती हैं सारी बातें, कालचक्र पर,
पथ पर, रह-रह कर,
कसक कहीं, उठती है मन पर,
कह देनी थी, वो बातें,
रुक जाती थी जो आकर,
इन होंठों पर,
अक्सर!
ठहरी सी, बातों के पंख लिए,
पखेरू, बस उड़ता है!
हँसता है वो, जीवन के इस छल पर,
रोता है, रह-रह कर,
मंडराता है, विराने से नभ पर,
कटती हैं, सूनी सी रातें,
अनथक, करवट ले लेकर,
जीवन पथ पर,
अक्सर!
कल-कल, बहता सा ये निर्झर,
रोके से, कब रुकता है!
फिसलन ही फिसलन, इस पथ पर,
नैनों में, बहते मंजर,
फिसलते हांथो से, वो अवसर,
देकर, यादों की सौगातें,
चूमती हैं, आगोश में लेकर,
इन राहों पर,
अक्सर!
कुछ बातें, अक्सर!
आकर, रुक जाती हैं होठों पर!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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