मंद सांसों में, बातें चंद कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
चुप हो तुम, तो चुप है जहां!
फैली है जो खामोशियाँ!
पसरती क्यूँ रहे?
इक गूंज बनकर, क्यूँ न ढले?
चहक कर, हम इसे कह क्यूँ न दें?
चल पिरो दें गीत में इनको!
बातें चंद ही कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
तू खोल दे लब, कर दे बयां!
दबी हैं जो चिंगारियाँ!
सुलगती, क्यूँ रहें?
इक आग बनकर, क्यूँ जले?
इक आह ठंढ़ी, इसे हम क्यूँ न दें?
बंद होठों पर, इसे रख दे!
बातें चंद ही कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
चंद बातों से, जला ले शमां!
पसरी है जो विरानियाँ!
डसती क्यूँ रहे?
विरह की सांझ सी, क्यूँ ढले?
मंद सी रौशनी, इसे हम क्यूँ न दें?
चल हाथ में, हम हाथ लें!
बातें चंद ही कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
मंद सांसों में, बातें चंद कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
चुप हो तुम, तो चुप है जहां!
फैली है जो खामोशियाँ!
पसरती क्यूँ रहे?
इक गूंज बनकर, क्यूँ न ढले?
चहक कर, हम इसे कह क्यूँ न दें?
चल पिरो दें गीत में इनको!
बातें चंद ही कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
तू खोल दे लब, कर दे बयां!
दबी हैं जो चिंगारियाँ!
सुलगती, क्यूँ रहें?
इक आग बनकर, क्यूँ जले?
इक आह ठंढ़ी, इसे हम क्यूँ न दें?
बंद होठों पर, इसे रख दे!
बातें चंद ही कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
चंद बातों से, जला ले शमां!
पसरी है जो विरानियाँ!
डसती क्यूँ रहे?
विरह की सांझ सी, क्यूँ ढले?
मंद सी रौशनी, इसे हम क्यूँ न दें?
चल हाथ में, हम हाथ लें!
बातें चंद ही कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
मंद सांसों में, बातें चंद कह दे!
तू आज, मुझसे कोई छंद ही कह दे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा