रात भर जलती रही थी उसके मन की अलाव...
नंगे बच्चों की भूख, तड़प की पीड़ा,
माथे पे शिकन, आँखों में जलन, काँपता तन,
सुलगाती रही उस मन में इक अलाव....
न आया कोई भी सुधि लेने उस अलाव की...
ठिठुरती ठंढ़ मे, क्षणिक राहत को,
चौराहे पर भी जलाई गई थी इक अलाव,
ठहाकों की गूंज में डूबा था वो गाँव,
पर जलाती रही थी उसे, मन की वो अलाव ....
मन की अलाव भारी पड़ी थी ठंढ़ पर,
निकल पड़ा वो बेचारा काम की तलाश पर,
बच्चों के पेट की सुलगती वो अलाव,
जलाती रही ठंढ मे भी चिंगारी बन बनकर....
कुछ पैसे आए थे उसकी हाथों पर,
कम थे फिर भी वो, महंगाई के अलाव पर,
तनाव दे गई थी वो जलती अलाव,
आज भी न बुझनी थी मन की वो अलाव...
रात भर जलती रही, फिर उस मन की अलाव!
और, चौराहे पर भी जलती रही इक अलाव!
नंगे बच्चों की भूख, तड़प की पीड़ा,
माथे पे शिकन, आँखों में जलन, काँपता तन,
सुलगाती रही उस मन में इक अलाव....
न आया कोई भी सुधि लेने उस अलाव की...
ठिठुरती ठंढ़ मे, क्षणिक राहत को,
चौराहे पर भी जलाई गई थी इक अलाव,
ठहाकों की गूंज में डूबा था वो गाँव,
पर जलाती रही थी उसे, मन की वो अलाव ....
मन की अलाव भारी पड़ी थी ठंढ़ पर,
निकल पड़ा वो बेचारा काम की तलाश पर,
बच्चों के पेट की सुलगती वो अलाव,
जलाती रही ठंढ मे भी चिंगारी बन बनकर....
कुछ पैसे आए थे उसकी हाथों पर,
कम थे फिर भी वो, महंगाई के अलाव पर,
तनाव दे गई थी वो जलती अलाव,
आज भी न बुझनी थी मन की वो अलाव...
रात भर जलती रही, फिर उस मन की अलाव!
और, चौराहे पर भी जलती रही इक अलाव!