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Wednesday, 6 November 2019

दूर हैं वो

दूर हैं वो, पल भर को, जरा सा आज!
तो, खुल रहे हैं सारे राज!
वर्ना न था, मुझको ये भी पता,
कि, जिन्दा है, मुझमें भी एक एहसास!

थे वो, कल तक, कितने ही पास,
तो, न थी कहीं, कोई कमी,
बस, फिक्र में थी, कहीं वो ही ज़मीं!
रोज, थी अनर्गल सी हजारों बातें,
अनर्थक, बेफिक्र कई जिक्र,
निरर्थक सी, कभी लगती थी जो,
वही थी, अर्थपूर्ण सी सौगातें,
न थी, उनकी ललक,
हर शै, उनकी ही थी झलक,
झंकृत था, हर ईक कोना,
लगता था, जरूरी है कहीं एक घर होना!
खल गई है, जरा सी दूरी,
पर, है जरूरी, पल भर को ये भी दूरी,
ताकि, जगता रहे ये एहसास,
मानव न हो जाए पत्थर,
कोई दूरी, दरमियाँ, न जन्म ले उत्तरोत्तर!

दूर हैं वो, कुछ पल को, जरा सा आज!
तो, मैं मुझको ही, ढूंढ़ता हूँ आज !
वर्ना न था, मुझको ये भी पता,
कि, बचा है, मुझमें भी एक एहसास!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Monday, 29 August 2016

दूरियों के एहसास

हाँ, तब महसूस करता है ये मन दूरियों के एहसास....

गुम सी होती जाती है .........
जब वियावान में कहीं मेरी आवाज,
जब गूँज कहकहों की..........
ना बन पाते है मेरे ये अल्फाज,
प्रतिध्वनि मन की जब........
मन में ही गूँजते हैं बन के साज,
उस पल महसूस करता है मन दूरियों के एहसास....

जब चांद सिमट जाता है......
टूटे से बादलों की बिखरी सी बाहों में,
रौशनी छन-छनकर आती है जब.....
उमरते बादलों सी लहराती सी सायों से,
चाँदनी टकराती है जब....,
ओस की बूँदों में नहाई नर्म पत्तों से,
उस पल महसूस करता है मन दूरियों के एहसास....

तुम हो यहीं पर कही....
मन को होता है हर पल ये एहसास,
पायल जब खनकती है कहीं....
दिला जाती है बरबस वो तेरी ही याद,
झुमके की लड़ियाँ हो मेले में सजी....
ख्यालों में तुम आ जाती हो अनायास,
उस पल महसूस करता है मन दूरियों के एहसास....

हाँ, तब महसूस करता है ये मन दूरियों के एहसास....