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Friday, 30 March 2018

किसलय

नील नभ के निलय में, खिल आए ये किसलय...

नव आशा के निलय से,
झांक रही वो कोमल किसलय,
इक नई दशा, इक नई दिशा,
करवट लेती इक नई उमंग का,
नित दे रही ये आशय....

नील नभ के निलय में, खिल आए ये किसलय...

कोमल सी इन कलियों में,
जन्म ले रहा इक जीवट जीवन,
बाधाओं को भी कर बाधित,
प्रतिकूल स्थिति को अनूकूल कर,
जिएंगी ये बिन संशय....

नील नभ के निलय में, खिल आए ये किसलय...

पंखुड़ियों पर ही खेलती,
प्रचन्ड रवि की ये उष्मा झेलती,
स्वयं नव ऊर्जा संचित कर,
जीने के ये खुद मार्ग प्रशस्त करती,
सुकोमल से ये किसलय....

नील नभ के निलय में, खिल आए ये किसलय...

Thursday, 16 November 2017

बदल रहा ये साल

युग का जुआ कांधे देकर, बदल रहा ये साल...

यादों के कितने ही लम्हे देकर,
अनुभव के कितने ही किस्से कहकर,
पल कितने ही अवसर के देकर,
थोड़ी सी मेरी तरुणाई लेकर,
कांधे जिम्मेदारी रखकर, बदल रहा ये साल...

प्रशस्त प्रगति के पथ देकर,
रोड़े-बाधाओं को कुछ समतल कर,
काम अधूरे से बहुतेरे रखकर,
निरंतर बढ़ने को कहकर,
युग का जुआ कांधे देकर, बदल रहा ये साल...

अपनों से अपनों को छीनकर,
साँसों की घड़ियों को कुछ गिनकर,
पीढी की नई श्रृंखला रचकर,
जन्म नए से युग को देकर,
सारथी युग का बनाकर, बदल रहा ये साल....

नव ऊर्जा बाहुओं में भरकर,
कीर्तिमान नए रचने को कहकर,
लक्ष्य महान राहों में रखकर,
आँखों में नए सपने देकर,
विकास पुरोधा बनकर, बदल रहा ये साल...

प्रस्तावों की इक सूची देकर,
मंत्र नए सबके कानों में कहकर,
अपनी मांग नई कुछ रखकर,
प्रण जन-जन से लेकर,
कुछ लेकर कुछ देकर, बदल रहा ये साल.....
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Accolade from "शब्दनगरी" / 17.11.2017
"बधाई हो! आपका लेख आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है"
हृदय तल से धन्यवाद शब्दनगरी....

Wednesday, 31 August 2016

अरुणोदय


अरुणोदय की हल्की सी आहट पाकर,
लो फिर मुखरित हुआ प्रभात,
किरणों के सतरंगी रंगों को लेकर,
नभ ने नव-आँचल का फिर किया श्रृंगार।

मौन अंधेरी रातों के सन्नाटे को चीरकर,
सूरज ने छेरी है फिर नई सी राग,
कलरव कर रहे विहग सब मिलकर,
कलियों के संपुट ने किया प्रकृति का श्रृंगार।

नव-चेतन, नव-साँस, नव-प्राण को पाकर,
जागा है भटके से मानव का मन,
नव-उमंग, नव-प्रेरणा, नव-समर्पण लेकर,
आँखों में भर ली है उसने रचना का नया श्रृंगार।