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Tuesday, 27 February 2018

प्रश्न से परहेज

क्यूं परहेज तुझे है मेरे प्रश्नों से?
है यक्ष प्रश्न यही...
मेरे उर्वर मन में अब तक अनसुलझे से!

जबकि .....
मेरी प्रश्न के केन्द्रबिंदु हो तुम!
मेरी अनगिनत प्रश्नों में सर्वश्रेष्ठ हो तुम!
मेरी अभिलाषा में इक ख्वाब हो तुम!
मेरी अनसुलझी सी इक सवाल हो तुम!
मेरी अश्कों में बहते से इक आब हो तुम!
मेरी जिज्ञासा के जवाब हो तुम!

फिर परहेज तुझे क्यूं मेरे प्रश्नों से?
उभरते है बस प्रश्न यही...
मेरे उर्वर मन में अब तक अनसुलझे से!

शायद ....
इस अथाह सृष्टि के थाह हो तुम!
या इस सृष्टि की हद के उस पार हो तुम?
प्रकृति का विस्मित रूप हो तुम!
या चिरपरिचित सी कोई स्वरूप हो तुम!
या हो वसुंधरा के आलिंगन का श्रृंगार तुम!
या कूकती करुण पुकार हो तुम!

परहेज तुझे क्यूं है मेरे प्रश्नों से?
उभरते है बस प्रश्न यही...
मेरे उर्वर मन में अब तक अनसुलझे से!

सर्वदा....
इक प्रश्न ही बने रह जाओगे तुम!
या इस पहेली को सुलझाओगे भी तुम!
या बनकर चाहत रह जाओगे तुम!
मन को प्रश्न बनकर उलझाओगे तुम!
या मुझसे ही इक प्रश्न कर जाओगे तुम!
यूं जिज्ञासा को ही बढ़ाओगे तुम!

क्यूं परहेज तुझे है मेरे प्रश्नों से?
उभरते है बस प्रश्न यही...
मेरे उर्वर मन में अब तक अनसुलझे से!

Monday, 11 April 2016

अनबुझे प्यास

है हाथों मे भरी गिलास,
पर इन अधरों पे अनबुझे से प्यास,
कुछ घूँट पी लेता हूँ मैं,
अधरों को नम कर लेता हूँ मैं,
पर अनबुझी सी फिर भी है वो प्यास।

प्यास कहाँ बुझती है इन प्यालों सें,
बढ़ जाती ये और इन प्यालों से,
प्यास छुपी पानी के अन्दर,
पानी के उपर ही तो ये प्याला तैरा है,
ये प्याला क्या अबतक अधरों पे ठहरा है?

सोचता हूँ मै भी तर जाऊँ,
इन प्यालों के संग लब को रंग डालूँ,
पहेली इस प्यास की मैं भी हल कर डालूँ,
प्यासे ये अधर क्ब तक रह पाएंगे,
जीवन की ये हाला हम पूरा पीकर जाएंगे।