Showing posts with label फेरे. Show all posts
Showing posts with label फेरे. Show all posts

Friday, 10 April 2020

अधिकार

इक अग्नकुंड के किनारे,
सौंप डाले थे,
तुम्हें हमने, अपने अधिकार सारे!

अब अधिकार है, सिर्फ तुझको!
आँखें फेर लो, या, अंक-पाश में घेर लो,
चलो, गगन में, संग दूर तक,
या, मध्य राह में, कहीं, मुँह मोड़ लो,
जल चुके थे, धू-धू हम तो,
उसी अग्नकुंड में!
जल चुकी थी, मेरी कामनाएँ,
बाकि, रही थी, एक इक्षा!
तुम करोगे, एक दिन,
मेरी समीक्षा!

इक अग्नकुंड के किनारे,
सौंप डाले थे,
तुम्हें हमने, अपने अधिकार सारे!

अधिकार है, पूछने का तुमको!
कितना जला मैं? कितना संग चला मैं?
उन, सात फेरों, में घिरा मैं!
या, मध्य राह में, वचन फिर सात लो,
सिमटते रहे, थे हम तो,
उसी प्रस्तावना में!
बहकती रही थी, मेरी भावनाएँ,
शेष, बची थी, एक इक्षा!
करोगे, एक दिन, तुम,
मेरी समीक्षा!

इक अग्नकुंड के किनारे,
सौंप डाले थे,
तुम्हें हमने, अपने अधिकार सारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)