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Friday, 19 January 2024

अलिखित हस्तलिपि

अपितु, कठिन जरा!
पढ़ पाना,
जज्बातों की, अलिखित हस्तलिपि....

पीड़ बन, छलक पड़े जब संवेदना,
अश्रू, सिमटे ना,
कहती जाए, व्यथा की कथा,
सारे दर्द, सिलसिलेवार!

जटिल जरा,
मूक हृदय के, संघातो की ये संतति....

कोरों से छलके, जाए क्या कहके!
बतलाऊं कैसे?
कब इन्हें, शब्दों की दरकार?
वर्ण, लगे, बिन आकार!

है मूक बड़ा,
अनकहे जज्बातों की, ये प्रतिलिपि....

बूझे ही कब, जज्बातों की भाषा!
पाषाण हृदय,
जाने ही कब, मूक अभिलाषा,
अन्तः, पीड़ करे बेजार!

अपितु, कठिन जरा!
पढ़ पाना,
जज्बातों की, अलिखित हस्तलिपि....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday, 30 March 2016

बेजुबाँ हृदय

मूक हृदय की पीड़ा कभी कह नही पाए वो लब!

सुलगती रही आग सी हृदय के अंतस्थ,
तड़पती रही आस वो हृदय के अंतस्थ,
झुलसती रही उस ताप से हृदय के अंतस्थ,
दबी रही बात वो हृदय के अंतस्थ!

बेजुबाँ हृदय की भाषा कब समझ सके हैं सब!

धड़कनों की जुबाँ कहता रहा मूक हृदय सदा,
भाव धड़कनों की लब तक न वो ला सका,
पीड़ा उस हृदय की नैनों ने लेकिन सुन लिया,
बह चली धार नीर की उन नैनों से तब!

मूक हृदय की पीड़ा कभी कह नही पाए वो लब!

Saturday, 16 January 2016

कौन सी भाषा

मैं न जानूँ व्यथित मन की भाषा,
समझ सकूँ न नैनों की मूक भाषा,
व्यथा भावना दृष्टि की समझ से परे,
अभिलाषा की भाषा अब कौन पढ़े?

किस भाषा मे वेदना लिख गए तुम?
मन की पीड़ा व्यथा क्या कह गए तुम?
अंकित मानस-हृदय पर ये आड़े-टेढ़े,
वेदना पीड़ा की भाषा अब कौन पढ़े?

हृदय भावविहीन पाषाण हो चुका!
मन के भीतर का मानव सो चुका!
भावनाओं का साहित्य जटिल हो चुका!
भाव-संवेदना की भाषा अब कौन पढ़े?