अपितु, कठिन जरा!
पढ़ पाना,
जज्बातों की, अलिखित हस्तलिपि....
पीड़ बन, छलक पड़े जब संवेदना,
अश्रू, सिमटे ना,
कहती जाए, व्यथा की कथा,
सारे दर्द, सिलसिलेवार!
जटिल जरा,
मूक हृदय के, संघातो की ये संतति....
कोरों से छलके, जाए क्या कहके!
बतलाऊं कैसे?
कब इन्हें, शब्दों की दरकार?
वर्ण, लगे, बिन आकार!
है मूक बड़ा,
अनकहे जज्बातों की, ये प्रतिलिपि....
बूझे ही कब, जज्बातों की भाषा!
पाषाण हृदय,
जाने ही कब, मूक अभिलाषा,
अन्तः, पीड़ करे बेजार!
अपितु, कठिन जरा!
पढ़ पाना,
जज्बातों की, अलिखित हस्तलिपि....
(सर्वाधिकार सुरक्षित)