वो मिल रहा पयोधर,
आकुल हो पयोनिधि से क्षितिज पर,
रमणीक क्षणप्रभा आ उभरी है इक लकीर बन।
वो अतुल मिलन के रम्य क्षण छाए हैं अब दृग पर!
वो झुक रहा वारिधर,
युँ आकुल हो प्रेमवश नीरनिधि पर,
ज्युँ चूम रहा जलधर को प्रेमरत व्याकुल महीधर।
वो अतुल मिलन के रम्य क्षण छाए हैं अब दृग पर!
अति रम्य यह छटा,
बिखरे हैं मन की अम्बक पर,
खिल उठे हैं सरोवर में नैनों के असंख्य मनोहर।
वो अतुल मिलन के रम्य क्षण छाए हैं अब दृग पर!
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