बोझ सारे लिए, उभर आती हैं झुर्रियाँ,
ताकि, सांझ की गर्दिश तले,
यादें ओझिल न हो, सांझ बोझिल न हो!
उम्र, दे ही जाती हैं आहट!
दिख ही जाती है, वक्त की गहरी बुनावट!
चेहरों की, दहलीज पर,
उभर आती हैं.....
आड़ी-टेढ़ी, वक्र रेखाओं सी ये झुर्रियाँ,
सहेजे, अनन्त स्मृतियाँ!
वक्त, कब बदल ले करवट!
खुरदुरी स्मृति-पटल, पे पर जाए सिलवट!
चुनती हैं एक-एक कर,
उतार लाती हैं.....
जीवन्त भावों की, गहरी सी ये पट्टियाँ,
मृदुल छाँव सी, झुर्रियाँ!
घड़ी अवसान की, सन्निकट!
प्यासी जमीन पर, ज्यूँ लगी हो इक रहट!
इस, अनावृष्ट सांझ पर,
न्योछार देती हैं...
बारिश की, भीगी सी हल्की थपकियाँ,
कृतज्ञ छाँव सी, झुर्रियाँ!
बोझ सारे लिए, उभर आती हैं झुर्रियाँ,
ताकि, सांझ की गर्दिश तले,
यादें ओझिल न हो, सांझ बोझिल न हो!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)