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Tuesday, 18 September 2018

मत कर ऐसी बात

मत कर फिर वो बात,
सखी, अब दिल भर आया है....

किस्मत का लेखा किसने देखा,
समय ही दे गया धोखा,
न वश मे थे हालात, फिर कैसा विलाप,
संताप मिला जो किस्मत में था,
विधि का था यही विधान,
बात वही फिर काहे का दोहराना.....

छेड़ो मत फिर वो बात,
सखी, अब दिल भर आया है....

सखी! भूले ना भूलेगा वो गम,
है उपरवाला ही बेरहम,
थी दामन में खुशी, दिया उसने ही गम,
मुश्किल है फिर से खिल पाना,
था भाग्य में ही मुरझाना,
फिर क्यूँ उन बातों को दोहराना....

यूँ दोहराओ ना वो बात,
सखी, अब दिल भर आया है....

टूटे जो तारे, गिरते हैं अवनि पर,
टूटे पत्ते गलते हैं यहीं पर,
अवनि पर छोड़ गए, यूँ मुझको भी वो,
है किस्मत में, यूँ ही मिट जाना,
कहते हैं, अम्बर पर हैं वो,
अब मुझको भी उन तक है जाना....

ना और कोई हो बात,
सखी, अब दिल भर आया है....

Wednesday, 11 July 2018

लकीरें

मिटाए नहीं मिटती ये सायों सी लकीरें.......

कहता इसे कोई तकदीर,
कोई कहता ये है बस हाथों की लकीर,
या गूंदकर हाथों पर,
बिछाई है इक बिसात किसी ने!

यूं चाल कई चलती ये हाथों की लकीरें.......

शतरंज सी है ये बिसात,
शह या मात देती उम्र सारी यूं ये साथ,
या भाग्य के नाम पर,
खेला है यहां खेल कोई किसी ने!

लिए जाए है कहां ये हाथों की लकीरें.......

आड़ी तिरछी सी राह ये,
कर्म की लेखनी का है कोई प्रवाह ये,
इक अंजाने राह पर,
किस ओर जाने भेजा है किसी ने!

मिटती नहीं हाथ से ये सायों सी लकीरें.......

या पूर्व-जन्म का विलेख,
या खुद से ही गढ़ा ये कोई अभिलेख,
कर्म की शिला पर,
अंकित कर्मलेख किया है किसी ने!

तप्तकर्म की आग से बनी है ये लकीरें......