भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
कौन खोए, चैन अपना!
बिन बात देखे, दिन रात सपना,
फिर उसी से, ये मिन्नतें,
करे हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
बेवजह ही, ये ख़्वाहिशें!
हर पल, कोई ख्वाब ही, ये बुने,
कोई काँच से, ये महल,
टूटे हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
मिली हैं, कितनी ठोकरें!
यूँ किसी, शतरंज की हों मोहरें,
जैसे चाल, वो चल गए,
कई हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
दूँ भी तो, फिर क्यूँ भला!
ये उधार, वापस ही कब मिला!
बिखर न जाएँ, धड़कनें,
मेरे हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)