उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत,
सिमटोगे, लकीरों में, कब तक!
झंकृत, हो जाएं कोई पल,
तो इक गीत सुन लूँ, वो पल ही चुन लूँ,
मैं, अनुरागी, इक वीतरागी,
बिखरुं, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत..
आड़ी तिरछी, सब लकीरें,
यूँ ही उलझे पड़े, कब से तुझको ही घेरे,
निकल आओ, सिलवटों से,
यूँ देखूँ, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत..
उतरे हो, यूँ सांझ बन कर,
पिघलने लगे हो, सहज चाँद बन कर,
यूँ टंके हो, मन की गगन पर,
निहारूँ, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत..
खोने लगे हैं, जज्बात सारे,
भला कब तक रहें, ख्वाबों के सहारे,
नैन सूना, ये सूना सा पनघट,
पुकारूँ, मैं कब तक!
उभर आओ ना, बन कर इक हकीकत,
सिमटोगे, लकीरों में, कब तक!
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