Saturday, 13 February 2016

आँखों का भरम


जानता हूँ तुमको जनमों से, तुम जानो या न जानो।

कई जन्मो पहले तुम मिले थे मुझको,
हम बिछड़े, फिर मिले हम, दुनिया से गुजरे, 
युग बीते, जन्म बदले, शक्ल बदले,
लगती ये बात पर आजकल की ही मुझको।

जानता हूँ कई जनमों से तुम्हे, तुम मानो या न मानो।

डोर कैसी जो खीचती तेरी ओर मुझको,
बिछड़े जन्मों पहले, फिर मिले हो तुम मुझको
आँखों में ये भरम कैसी, जो शक्ल बदले?
जन्मों-जन्मो से मिलते रहे तुम युंही मुझको।

जनमों जनमों का ये बंधन, तुम मानो या न मानो।

संध्या प्रेम

संध्या दिन की बाहों में अटकी सी,
जाने की विवश रुकने की चिन्ता में भटकी सी,
मंद पवन रोकती राहें लट सहलाती संध्या की।

संध्या की सासें प्रीत मे अटकी सी,
धीमी धवल मद्धिम रौशन राहों मे भटकी सी,
चंचला रात्रि संध्या प्रेम में डूबी मदमाई सी।

संध्या स्वप्न सम सुंदर चटकी सी,
अब डूब रही रात की आगोश में मतवाली सी,
रूप-मधु रात्रि की संध्याप्रीत मे निखरी सी।

स्वर नए गीत के गा

धीर रख! स्वर नए गीत के गा, चल मेरे साथ अब।

रहता था आसमाँ पर एक तारा यही कहीं,
गुजरा था टूट कर एक तारा कभी वहीं,
मिलते नही वहाँ उनकी कदमों के निशान अब,
रौशनी है प्रखर, पर दिखती नही राह अब।

भटक रहे हैं हम किन रास्तों पे अब?
दिखते नही दूर तक मंजिलों के निशान अब,
अंतहीन रास्तों मे भटका है अब कारवाँ,
बिछड़ी हुई हैं मंजिले, भटकी हुई सी राह अब।

बेसुरी लय सी रास्तों के गीत सब,
बजती नही धुन कोई भटकी हुई राहों में अब,
आरोह के सातों स्वर हों रहे अवरुद्ध अब,
धीर रख! स्वर नए गीत के गा, चल मेरे साथ अब।

सरस्वती वंदन

सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षी विद्यां देहि नमोस्तुते।

सरस्वती  मंत्र 
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं तु सरस्वती l 
तृतीयं शारदा देवी चतुर्थ हंसवाहिनी l
 पंचम जगतीख्याता षष्ठं   माहेशवरी तथा l 
सप्तमं तु कौमारी अष्टमं ब्रह्माचारिणी  l 
नवमं विद्याधात्रीनि दशमं वरदायिनी l 
एकादशं रूद्रघंटा द्वादशं भुवनेश्वरी l 
एतानि द्वादशो नामामि य: पठेच्छ्रुणयादपि l 
नच  विध्न भवं तस्य मंत्र सिद्धिकर तथा l

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया। वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि र्देवैः सदा वन्दिता । 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

(जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं जिनके हाथ में वीणादण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूरण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें॥1॥)

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्हस्ते 
स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्वन्दे 
तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥

(शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अँधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान् बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूँ॥

Friday, 12 February 2016

बेफिक्री के क्षण

स्वच्छंद श्वास हैं, बेफिक्र मन का पंछी पावंदियों से है परे...

उड़ बेफिक्र मन मेरे,
बेफिक्री के स्वच्छंद क्षण साथ तेरे,
रवानियाें मे डूबे ये हर्षित पल जीवन के सारे।

दिल करता है रोक लू मैं,
चपल वक्त के इन बढ़ते कदमों को,
इन्हीं खुमारियों मे बीते क्षण जीवन के ये सारे।

हासिल बेफिक्री आज मुझको,
स्फूर्त बेफिक्री की साँसे समाहित मुझमें,
हृदय के तार-तार स्पन्दित बेफिक्री के क्षण में सारे।

पल-पल मुखरित जीवन के,
साँसों की लय हैं आपाधापी से उन्मुक्त,
बेफिक्री के ये स्वच्छंद जीवन क्षण अब मेरे है सारे। 

उड़ने को मुक्त है ये पर मेरे,
उलझनों से मुक्त जीवन के ये क्षण मेरे,
इक विश्वास हैं, बेफिक्र पंछी क्युँ न ऊँची उड़ान भरे...

टहनियाँ-फुनगियाँ

टहनियाँ जीवन की, नींव भविष्य के आंगण की।

टहनियों को रखता हूँ संभालकर
नाजुक कोमल सी ये टहनियाँ,
जीवन उर्जित करने की शक्ति से परिपूर्ण,
लवरेज मादकता सौंन्दर्य से,
पर कितना सीधा, सरल, काम्य।

फुनगियाँ टहनियाें की, नींव भविष्य के जीवन की।

टहनियों की फुनगी प्यारी कोमल,
परागकण जीवन के संभालता,
अंग प्रत्यंग सुकोमल माधूर्य रस से भरा,
जीवन्त जीने की कलाओ से,
पर कितना सीधा, सरल, काम्य।

टहनियाँ, फुनगियाँ नींव जीवन के आंगण की।

अमरत्व गरल अश्रुधार!

तुम अविरल अश्रुधार पोछ नही पाओगी!

एक अश्रु-धार नभ से होकर आती,
रुकती कहाँ सुनती कहाँ ये मन की,
निर्झर सी बस आँखों से बह जाती।

तुम अश्रुओं की भाषा पढ़ नही पाओगी!

अश्रु-धार बन कहती प्रेम की भाषा,
वेदना हृदय के आँखों से कह जाती,
थम जाती नैनों में ओस की बुंदों सी।

तुम कोलाहल अश्रुधार की सुन नही पाओगी!

सजते नैन सजल अश्रुधार अविरल,
सागर मंथन से ज्यों निकलता गरल,
हलाहल मन में क्यूँ जब नैन सजल?

तुम मंथन गरल नैनों की पी नही पाओगी!

नैन गरल पीकर अमरत्व पा जाऊँ,
सजल नैन नित्य अश्रुधार ले आऊँ,
निर्झर नैनों में प्रीत सदा भर जाऊँ।

तुम अमरत्व नैन गरल की पा नही पाओगी!

नभ की सुन लो, नभ संग तुम भींग लो!

तुम नभ की सुन लो, जरा सा नभ संग तुम भींग लो!

उमड़-घुमड़ नभ आते तुझसे मिलने,
लटें घुँघराली पुकारती हैं आकाश से,
नभ मंडल गूंजित करती आवाज से,

नभ की गर्जना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!

मंद मंद फाहा सी गिर रही बूंदे नभ से,
कण कण धरा की भीग रहे हैं बूंदों से,
तुम भी पीड़ हृदय के बूंदों संग धो लो,

नभ की साधना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!

है वो कौन सी पीड़ जो है नभ से भारी,
नभ नीर से सागर की प्यास बुझ जाती,
विचर रही नभ यहाँ भिगोने तुमको ही,

नभ की वेदना सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!

उधर लताओं संग भीग रहे हैं पत्ते पत्ते,
फूल भीगी संग सारे कलियाँ भी भींगे,
नभवृष्टि प्रेम में हृदय के तार तार भींगे,

नभ की प्रेमलीला सुन लो, नभ संग तुम भी भींग लो!

अवसाद में जन्मदिन

क्षण क्षण उम्र बढ़ रही है अवसान को,
 यह जन्मदिन जन्म दे रही अवसाद को।

अब तो प्रहर सांझ की ढलने को आई,
 मुझसे मीलों पीछे छूटी है मेरी तरुणाई।

मनाऊँ कैसे जन्मदिन इस उम्र में अब,
तार वीणा के सुर में बजते नही है अब।

मृदंग के स्वर कानों में गूंजते नहीं अब,
तानपूरे की उम्र ही ढल गई मानो अब।

केक मिठाई तो बन चुके है मेरे दुश्मन,
जन्मदिन मनाने का अब रहा नहीं मन।

Thursday, 11 February 2016

मेरी साधना

गीत मैं वो गा न सका, क्या कभी गा पाऊंगा?

सदियों साधना की उस संगीत की,
अभिमान था मुझको मेरे दृढ़ विश्वास पर,
पर साथ दे न सका मुझको मेरा अटल विश्वास,
असफल रही कठिन साधना मेरी।

गीत मैं वो गा न सका, गीत मैं वो दोहरा न सका।

सुर ही कठिन है इस जीवन संगीत का,
या साधना के योग्य नही बन पाया मै ही शायद,
साधक हूँ मैं पर! निरंतर रत रहूंगा साधना मे,
है मुझको विश्वास लगन पर मेरी।

गीत मैं जो गा न सका, गीत मैं वो फिर दोहराऊंगा!