Saturday, 13 February 2016

संध्या प्रेम

संध्या दिन की बाहों में अटकी सी,
जाने की विवश रुकने की चिन्ता में भटकी सी,
मंद पवन रोकती राहें लट सहलाती संध्या की।

संध्या की सासें प्रीत मे अटकी सी,
धीमी धवल मद्धिम रौशन राहों मे भटकी सी,
चंचला रात्रि संध्या प्रेम में डूबी मदमाई सी।

संध्या स्वप्न सम सुंदर चटकी सी,
अब डूब रही रात की आगोश में मतवाली सी,
रूप-मधु रात्रि की संध्याप्रीत मे निखरी सी।

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