तृष्णा ही है ये इस मन की, जिसमें डूबा है जीवन,
निर्णय-अनिर्णय के दोराहे पर डोलता जीवन,
क्या कुछ पा लूँ, किसी और के बदले में,
क्युँ खो दू कुछ भी, उन अनिश्चितता के बदले में,
भ्रम की इस किश्ती में बस डोलता है जीवन।
भ्रम के अंधियारे में है तृष्णा, जिसमें डूबा है जीवन।
कब मिल सका है सब को यहाँ मनचाहा जीवन,
समझौता करते है सब, खुशियों के बदले में,
खोना पड़ता है खुद को भी, इन साँसों के बदले में,
उस रब के हाथों में ही बस खेलता है जीवन।
कब बुझ पाएगी ये तृष्णा, जिसमें डूबा है जीवन।
निर्णय-अनिर्णय के दोराहे पर डोलता जीवन,
क्या कुछ पा लूँ, किसी और के बदले में,
क्युँ खो दू कुछ भी, उन अनिश्चितता के बदले में,
भ्रम की इस किश्ती में बस डोलता है जीवन।
भ्रम के अंधियारे में है तृष्णा, जिसमें डूबा है जीवन।
कब मिल सका है सब को यहाँ मनचाहा जीवन,
समझौता करते है सब, खुशियों के बदले में,
खोना पड़ता है खुद को भी, इन साँसों के बदले में,
उस रब के हाथों में ही बस खेलता है जीवन।
कब बुझ पाएगी ये तृष्णा, जिसमें डूबा है जीवन।
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