Sunday, 22 May 2016

बदली सी फिजाँ

बदली सी है फिजाँ, अब इस शहर की मेरी,
हर शख्स ढूँढ़ता है यहाँ, इक आशियाँ अलग सी,
इक नाम मेरा है खुदा, चप्पे-चप्पे पे इस शहर की,
आशियाँ तो है मेरा, जर्रा जर्रा इस शहर की।

बदले हैं बस लोग, बदली कहाँ ये गलियाँ,
चैनो-ओ-शुकुन बदले हैं, गम ही गम है अब यहाँ,
चेहरों पे चेहरे हैं लगे, जुदा मुझसे मेरा साया यहाँ, 
दिल के करीब थे जो, गुमसुदा वो मुझसे यहाँ।

बदलते मौसमों से, बदले हैं अब रिश्ते यहाँ,
मुरझा चुके है फूल सब, रिश्तों के धागे लहुलुहाँ,
हर धड़कते दिलों के अन्दर, दर्द के सैकड़ों निशाँ,
लब्जों में छुपे हैं खंजर, मन से उठता है धुआँ।

सोचता हूँ आज मैं, कब लोग समझेंगे यहाँ,
रिश्तों की भीनी खुश्बुओं में, हम साँस लेते हैं यहाँ,
अंश नई कोपलों से कोमल, लहलहाते हैं अपने यहाँ,
हम धूल हैं इस शहर की, ये शहर है आशियाँ मेरा।

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