Showing posts with label चैन. Show all posts
Showing posts with label चैन. Show all posts

Tuesday, 11 May 2021

दिल, न दूँगा उधार

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

कौन खोए, चैन अपना!
बिन बात देखे, दिन रात सपना,
फिर उसी से, ये मिन्नतें,
करे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

बेवजह ही, ये ख़्वाहिशें!
हर पल, कोई ख्वाब ही, ये बुने,
कोई काँच से, ये महल,
टूटे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

मिली हैं, कितनी ठोकरें!
यूँ किसी, शतरंज की हों मोहरें,
जैसे चाल, वो चल गए,
कई हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

दूँ भी तो, फिर क्यूँ भला!
ये उधार, वापस ही कब मिला!
बिखर न जाएँ, धड़कनें,
मेरे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday, 25 January 2020

तन्हाई में कहीं

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

मन को चीर रही, ये शोर, ये भीड़,
हो चले, कितने, ये लोग अधीर,
हर-क्षण है रार, ना मन को है करार, 
क्षण-भर न यहाँ, चैन जरा!

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

सुई सी चुभे, कही-अनकही बातें,
मन में ही दबी, अनकही बातें,
कैसे, कर दूँ बयाँ, दर्द हैं जो हजार,
समझा, इस मन को जरा!

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

वो छाँव कहाँ, मिले आराम जहाँ,
वो ठाँव कहाँ, है शुकून जहाँ,
नफ़रतों की, चली, कैसी ये बयार,
बहला, मेरे मन को जरा!

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 13 January 2019

यदा कदा

यदा कदा!
फिर कर उठता है मन,
सजल नैनों से, उन राहों पे सजदा,
जिद, फिर जाने की उधर,
उजाड़ सा वो शहर,
दुर्गम अपवाहित वो ही डगर!
उठते हैं जिन पर,
रह-रह कर,
नित, कोई प्रबल ज्वर,
नियंत्रण, ना हो जिन पर....
दो घड़ी,
पा लेने को चैन,
अनथक, करता है प्रतीक्षा,
उन राहों पे मन,
चल पड़ता है, करने को फिर सजदा...

यदा कदा!
फिर कह उठता है मन,
निर्जन है वो वन, पागल ना बन,
जिद, ना तू कर इस कदर,
उजड़ा है वो शहर,
क्या पाएगा जाकर उस डगर?
मरघट है बस जिधर,
जी-जी कर,
नित, मरते सब जिधर,
अधिकार, ना हो जिन पर,
पा लेने को चैन,
असफल, करता है इक्षा,
उन राहों पे मन,
क्यूँ चलता है, करने को फिर सजदा...

यदा कदा!
फिर बह उठता है मन,
उफनती हुई, इक नदिया बन,
जिद, प्रवाह पाने को उधर,
बहा जाने को शहर,
प्रवाहित ही कर देने को डगर,
सम्मोहन सा है जिधर,
मर-मर कर,
नित, जीता वो जिधर,
ठहराव, ना हो जिन पर,
पा लेने को चैन,
प्रतिपल, देता है परिविक्षा,
खुद राहों को मन,
समाहित कर, फिर करता है सजदा...

यदा कदा! कैसी ये सजदा!

Thursday, 27 September 2018

मन के आवेग

आवेग कई रमते इस छोटे से मन में,
जैसे बूँदें, बंदी हों घन में....

गम के क्षण, मन सह जाता है,
दुष्कर पल में, बह जाता है,
तुषारापात, झेल कर आवेगों के,
विकल हो जाता है.....

मन कोशों दूर निकल जाता है,
फिर वापस मुड़ आता है,
बंधकर आवेगों में, रम जाता है,
वहीं ठहर जाता है...

प्रवाह प्रबल मन के आवेगों में,
कहीं दूर बहा ले जाता है,
कण-कण प्लावित कर जाता है,
बेवश कर जाता है....

गर वश होता इन आवेगों पर,
धीर जरा मन को आता,
खुद को ले जाता निर्जन वन में,
चैन जहाँ रमता है...

आवेग कई रमते इस छोटे से मन में,
जैसे बूँदें, बंदी हों घन में....

Sunday, 13 May 2018

ले गया चैन कोई

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

वो जो कहते थे, बस हम है तुम्हारे,
सिर्फ हम थे कभी, जिनकी आँखों के तारे,
करार वो ही मन के, ले गए हैं सारे,
इन बेकरारियों में जीवन, कोई कैसे गुजारे?

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

चीज अनमोल ये, मैं कहाँ से पाऊँ,
चैन! वस्तु नहीं कोई, जो मैं खरीद लाऊँ,
पर जिद्दी ये मन मेरा, इसे कैसे बताऊँ,
छीना है जिसने करार, मन उसे ही पुकारे!

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

कोई पुतला नहीं, इक जीव हूं संजीदा,
उमरती हैं भावनाएँ, न ही इसे हमने खरीदा,
वश भावनाओं पर, कहाँ है किसी का?
इन्हीं भावनाओं के हाथो, ये मन बिका रे!

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

सोचा था, न जाऊंगा मैं फिर उस तरफ,
कदमताल करता है मन, हरदम उसी तरफ,
कदमों को रोककर, समझाता हूं मैं,
मगर वश में मेरा मन, अब रहा ही कहाँ रे!

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

Friday, 11 August 2017

है कहाँ?

है कहाँ अब वो दिन, है कहाँ अब वो बेकरारियाँ?

चैन के वो दिन, अब हो चुके है ग्रास काल के,
वक्त के ये अंधेरे निगल चुके हैं जिसे,
ढूंढते है बस हम उन्हें, थामे चराग हाथ में।

है कहाँ अब वो पल, है कहाँ अब वो तन्हाईयाँ?

गुजर चुके वो सारे पल, जो कभी थे बस मेरे,
सर्द खामोशियों के है बस हर तरफ,
भटक रहे हैं हम, चैनों शुकून की तलाश में।

हैं कहाँ अब वो लोग, है कहाँ अब वो कहानियाँ?

गुम न जाने वे हुए कहाँ, जो थे करीब दिल के,
हैं फलक पर वो बनकर सितारों से टँके,
चुप सी है वो बोलती कहानी, खामोश सी ये रातें।

है कहाँ अब वो दबिश, है दिल के चैन अब कहाँ?