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Saturday, 25 January 2020

तन्हाई में कहीं

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

मन को चीर रही, ये शोर, ये भीड़,
हो चले, कितने, ये लोग अधीर,
हर-क्षण है रार, ना मन को है करार, 
क्षण-भर न यहाँ, चैन जरा!

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

सुई सी चुभे, कही-अनकही बातें,
मन में ही दबी, अनकही बातें,
कैसे, कर दूँ बयाँ, दर्द हैं जो हजार,
समझा, इस मन को जरा!

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

वो छाँव कहाँ, मिले आराम जहाँ,
वो ठाँव कहाँ, है शुकून जहाँ,
नफ़रतों की, चली, कैसी ये बयार,
बहला, मेरे मन को जरा!

चलो ना, तन्हाई में कहीं, कुछ देर जरा....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday, 19 February 2019

करार

ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?

भीगी है ये, आँखें क्यूँ,
यूँ फैलाए है पर, आसमां पे क्यूँ,
ना तू, इस कदर मचल,
आ जा, जमीं पे साथ चल,
मुझ पे कर ले, ऐतबार!

ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?

परेशान हैं, इतना क्यूँ,
हैरान इस कदर, ये तेरे नैन क्यूँ,
गुम है, बातों में खनक,
अधूरी सी, आँखों में ललक,
तू कर, काबू में करार!

ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?

धड़कनें हैं, तेज क्यूँ,
अन्तरमन तेरा, निस्तेज क्यूँ,
लड़खड़ाए से कदम,
छूट जाए न, कहीं तेरा दम,
एक, तू ही है मेरा यार!

ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Sunday, 13 May 2018

ले गया चैन कोई

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

वो जो कहते थे, बस हम है तुम्हारे,
सिर्फ हम थे कभी, जिनकी आँखों के तारे,
करार वो ही मन के, ले गए हैं सारे,
इन बेकरारियों में जीवन, कोई कैसे गुजारे?

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

चीज अनमोल ये, मैं कहाँ से पाऊँ,
चैन! वस्तु नहीं कोई, जो मैं खरीद लाऊँ,
पर जिद्दी ये मन मेरा, इसे कैसे बताऊँ,
छीना है जिसने करार, मन उसे ही पुकारे!

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

कोई पुतला नहीं, इक जीव हूं संजीदा,
उमरती हैं भावनाएँ, न ही इसे हमने खरीदा,
वश भावनाओं पर, कहाँ है किसी का?
इन्हीं भावनाओं के हाथो, ये मन बिका रे!

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

सोचा था, न जाऊंगा मैं फिर उस तरफ,
कदमताल करता है मन, हरदम उसी तरफ,
कदमों को रोककर, समझाता हूं मैं,
मगर वश में मेरा मन, अब रहा ही कहाँ रे!

छीन कर मन का करार, ले गए वो चैन सारे....

Thursday, 1 March 2018

मंजिल

मंजिल तेरी, इसी राह आएगी निकल....
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

क्यूं खोए है करार तू?
क्यूं यहाँ गम से है बेजार तू?
न राई का बना पहाड़ तू,
बस एक ही तो मेरा यार तू......
न जिंदगी बेकार कर!
न गम का तू कहीं इजहार कर!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

तू मुझसे मन का करार ले,
एक नया ऋंगार ले,
हर गम तू मुझपे वार ले,
पर यूं फैसले न तू हजार ले......
न आँहें हजार भर,
न शिकवे तू कहीं हजार कर!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

कल यूं पशेमाँ न होना पड़े,
तू काहे को ऐसा करे?
पल-पल जो यूं आँहें भरे,
राहें बदल बेजार खुद को करे.....
न यूं फैसले बदल!
कर के वादा कोई तू न बदल!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

बेशक न मुझको भी है खबर,
कि मंजिल तेरी है किधर!
इक राह पर बेखबर,
यूं ही चलना है तुझको मगर......
रुक जाए ना ये सफर!
यहीं है कहीं तेरे मन का शहर!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

मंजिल तेरी, इसी राह आएगी निकल....
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!