Friday, 13 July 2018

जीवन्त पल

आदि है यही, इक यही है अन्त,
संग गुजारे है जो पल, बस वही है जीवन्त!

इक मृत शिला सा,
मैं था पड़ा,
राह के ठोकरों सा,
मैं था गिरा,
चंद आस्था के फूल लेकर,
स्नेह स्पर्श देकर,
जीवन्त तूने ही किया....

संग बीते पल कई,
स्नेह तेरा मिला,
अब नहीं मैं मृत शिला,
भाव पाकर,
जी उठा अब ये शिला,
देवत्व सा मिला,
तेरे ही मन्दिर में खिला....

अब धड़कते हैं हृदय,
इक कंपन सी है,
नैनों में नीर आकर है भरे,
छलका है मन,
प्रारब्ध है ये प्रेम की,
या है ये अन्त मेरा,
क्षण है यही जीवन्त मेरा.....

पतझड़ है यही, यही है बसन्त,
तुम संग जो गुजरे, पल वही है जीवन्त.....

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