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Wednesday, 20 May 2020

COVID 19: इक तलाश

COVID 19: अविस्मरणीय संक्रमण के इस दौर में, कोरोना से खौफजदा जिन्दगियों की चलती फिरती लाशों के मध्य, जिन्दगी एक वीभत्स रूप ले चुकी है। हताशा में यहाँ-वहाँ भटकते लोग, अपनी कांधों पे अपनी ही जिन्दगी लिए, चेतनाशून्य हो चले हैं । मर्मान्तक है यह दौर। न आदि है, ना ही अंत है! हर घड़ी, शेष है बस, इक तलाश ....

सुसुप्त सी हो चली, चेतना की गली,
हर पहर, है वेदना की,
इक तलाश!

हर तरफ, खौफ के मध्य!
ढूंढती है, जिन्दगी को ही जिन्दगी!
शायद, बोझ सी हो चली, है ये जिन्दगी,
ढ़ो रहे, वो खुद, अपनी ही लाश,
जैसे, रह गई हो शेष,
इक तलाश!

सुसुप्त सी हो चली, चेतना की गली,
हर पहर, है वेदना की,
इक तलाश!

अजीब सा, इक मौन है!
जिन्दगी से, जिन्दगी ही, गौण है!
चल रहे वे अनवरत, लिए एक मौनव्रत,
पर, गूंजती है, उनकी सिसकियाँ!
उस आस में, है दबी,
इक तलाश!

सुसुप्त सी हो चली, चेतना की गली,
हर पहर, है वेदना की,
इक तलाश!

न आदि है, ना ही अंत है!
उन चेतनाओं में, सुसुप्त प्राण है,
उनकी कल्पनाओं में, इक अनुध्यान है,
उन वेदनाओं में, इक अजान है,
बची है, श्याम-श्वेत सी,
इक तलाश!

सुसुप्त सी हो चली, चेतना की गली,
हर पहर, है वेदना की,
इक तलाश!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 13 July 2018

जीवन्त पल

आदि है यही, इक यही है अन्त,
संग गुजारे है जो पल, बस वही है जीवन्त!

इक मृत शिला सा,
मैं था पड़ा,
राह के ठोकरों सा,
मैं था गिरा,
चंद आस्था के फूल लेकर,
स्नेह स्पर्श देकर,
जीवन्त तूने ही किया....

संग बीते पल कई,
स्नेह तेरा मिला,
अब नहीं मैं मृत शिला,
भाव पाकर,
जी उठा अब ये शिला,
देवत्व सा मिला,
तेरे ही मन्दिर में खिला....

अब धड़कते हैं हृदय,
इक कंपन सी है,
नैनों में नीर आकर है भरे,
छलका है मन,
प्रारब्ध है ये प्रेम की,
या है ये अन्त मेरा,
क्षण है यही जीवन्त मेरा.....

पतझड़ है यही, यही है बसन्त,
तुम संग जो गुजरे, पल वही है जीवन्त.....