ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!
हो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
रंग चटक, उनसे लेती हैं कलियाँ,
फिर मटक-मटक, खिलती हैं पंखुड़ियां,
और लटक झूलती ये टहनियाँ,
उस ओर ही, भटक जाती है दुनियाँ!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
स्वर्णिम सा, हो उठता है क्षितिज,
सरोवर में, मुखरित हो उठते हैं वारिज,
खुश्बूओं में, वो ही हैं काबिज,
हर शै, होता उनसे ही परिभाषित!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
उनकी बातें, उनकी ही धड़कन,
उनकी होठों का, कर्ण-प्रिय सा कंपन,
मधु-प्रिय, चूड़ी की खन-खन,
हर क्षण सरगम, लगता है आंगन!
ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!
हो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
रंग चटक, उनसे लेती हैं कलियाँ,
फिर मटक-मटक, खिलती हैं पंखुड़ियां,
और लटक झूलती ये टहनियाँ,
उस ओर ही, भटक जाती है दुनियाँ!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
स्वर्णिम सा, हो उठता है क्षितिज,
सरोवर में, मुखरित हो उठते हैं वारिज,
खुश्बूओं में, वो ही हैं काबिज,
हर शै, होता उनसे ही परिभाषित!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......
उनकी बातें, उनकी ही धड़कन,
उनकी होठों का, कर्ण-प्रिय सा कंपन,
मधु-प्रिय, चूड़ी की खन-खन,
हर क्षण सरगम, लगता है आंगन!
ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 02 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दीदी।
Deleteमधु-प्रिय बातें
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय प्रकाश जी।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.01.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3233 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय दिलबाग विर्क जी।
Deleteस्वर्णिम सा, हो उठता है क्षितिज,
ReplyDeleteसरोवर में, मुखरित हो उठते हैं वारिज,
खुश्बूओं में, वो ही हैं काबिज,
हर शै, होता उनसे ही परिभाषित!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीय
सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteउनकी बातें, उनकी ही धड़कन,
ReplyDeleteउनकी होठों का, कर्ण-प्रिय सा कंपन,
मधु-प्रिय, चूड़ी की खन-खन,
हर क्षण सरगम, लगता है आंगन!
ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!
बहुत ही सुन्दर मनभावन सृजन...
वाह!!!
आदरणीया सुधा जी, सादर आभार ।
Deleteबहुत सुन्दर पुरुषोत्तम जी. आज की भाग-दौड़ की ज़िन्दगी में ऐसे ख़ुशगवार रूमानी लम्हें हों तो फिर से जीने की तमन्ना कौन नहीं करेगा?
ReplyDeleteआदरणीया गोपेश्वर जी,आशीर्वचनों हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteबहुत ही सुंदर रचना आदरणीय
ReplyDeleteहो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!
लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें....
आदरणीय रवीन्द्र जी, सादर आभार ।
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