Sunday, 27 January 2019

अवधारणा

पुनर्सृजित होते हो, कल्पनाओं में तुम ही...

मूर्त रूप हो कोई, या हो महज कल्पना,
या हो तुम, मेरी ही कोई, सुसुप्त सी चेतना,
हर घड़ी, हर शब्द, तेरी ही विवेचना!

पुनर्सृजित हो जाते हो, रचनाओं में तुम ही...

यथार्थ संवेदना हो, या सिर्फ संकल्पना,
अनुभूति हो कोई, या हो महज अवधारणा,
सदियों जिसकी, की है मैंने विवेचना!

पुनर्सृजित होते हो, संवेदनाओं में तुम ही...

अमूर्त विचार, जो झकझोरती है चेतना,
कोई अन्तर्वेदना, जो तलाशती हैं संभावना,
रूप-सौन्दर्य, ना हो जिसकी विवेचना!

पुनर्सृजित होते हो, विवेचनाओं में तुम ही...
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अवधारणा: चेतना का वो मूल तत्व, जो, वस्तु को उसके अर्थ तथा अर्थ को वस्तु के बिम्ब के साथ जोड़ती है और चेतना को, संवेदनात्मक बिम्बों से अलग, इक स्वतंत्र रूप से पहचानने की संभावना पैदा करती है।

20 comments:

  1. अनुभूतियों के भीतरी स्तर पर विचरती रचना। बहुत सुंदर।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया शोभा बढ़ा गई इस रचना की। आदरणीय विश्वमोहन जी बहुत-बहुत धन्यवाद, आभार।

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  2. आवश्यक सूचना :
    अक्षय गौरव त्रैमासिक ई-पत्रिका के प्रथम आगामी अंक ( जनवरी-मार्च 2019 ) हेतु हम सभी रचनाकारों से हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित करते हैं। 15 फरवरी 2019 तक रचनाएँ हमें प्रेषित की जा सकती हैं। रचनाएँ नीचे दिए गये ई-मेल पर प्रेषित करें- editor.akshayagaurav@gmail.com
    अधिक जानकारी हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जाएं !
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    1. शुक्रिया आदरणीय ध्रुव जी। अवश्य ही भेजूंगा ।

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  3. बहुत खूब .....हमेशा की तरह लाजबाब, सादर नमन आप को

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    1. आदरणीया कामिनी जी, हमेशा प्रेरित करने हेतु हृदयतल से आभार । शुभकामनाएं ।

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 29 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. यथार्थ संवेदना हो, या सिर्फ संकल्पना,
    अनुभूति हो कोई, या हो महज अवधारणा,
    सदियों जिसकी, की है मैंने विवेचना!
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब... गहन चिन्तनीय....

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    1. आदरणीया सुधा देवरानी जी, बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-01-2019) को "कटोरे यादों के" (चर्चा अंक-3231) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी।

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  8. पूर्ण सृजित होती हो विवेचनाओं में तुम ....
    बहुत ही गहन अभिव्यक्ति ... जिसकी चाहत, कल्पना मूर्त रूप साकार करे .... जो सर्वत्र रहे उसकी अवधारणा उसकी चाहत ही प्रेम का अंतिम छोर है ...
    सुन्दर रचना .. बधाई ...

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    1. प्रेरक शब्दों व सराहना हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद ।आभारी हूँ आदरणीय नसवा जी।

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  9. यथार्थ संवेदना हो, या सिर्फ संकल्पना,
    अनुभूति हो कोई, या हो महज अवधारणा,
    सदियों जिसकी, की है मैंने विवेचना!
    वाह अप्रतिम अनुपम सृजन परुषोत्तम जी।

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    1. आदरणीया कुसुम कोठारी जी, आपका हार्दिक स्वागत है। आपकी टिप्पणी ने मेरी रचना की शोभा बढ़ा दी है। यह मेरे लिए सम्मान और सुखद अनुभूति का विषय है। बहुत-बहुत धन्यवाद ।

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