फीकी ही सही, चाय, गर्म तो हो मगर,
रिश्ते ना सही, मायने, रिश्तों के तो हों मगर!
सिमट कर रह गए, रिश्तों के खुले पर,
महज औपचारिकताओं के, जकड़े पाश में
उड़ते नही ये, अब खुले आकाश में!
चहचहाते थे कभी, मीठी प्यालियों में,
उड़ते थे ये कभी, चाय संग सर्द मौसमों में,
अब बची, औपचारिकताएँ चाय में!
फीकी सी हुई, रिश्तों की सुगबुगाहट,
अब कहाँ है, चाय के प्यालियों की आहट,
हो न हो चीनी, कम गई है चाय में!
या जरूरतें! या स्वार्थ! हुई हैं प्रभावी,
या झूठी तरक्की, सब पे हो चुकी हैं हावी,
कम हो चुकी है, गर्माहट चाय में!
फीकी ही सही, चाय, गर्म तो हो मगर,
रिश्ते ना सही, मायने, रिश्तों के तो हों मगर!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
रिश्ते ना सही, मायने, रिश्तों के तो हों मगर!
सिमट कर रह गए, रिश्तों के खुले पर,
महज औपचारिकताओं के, जकड़े पाश में
उड़ते नही ये, अब खुले आकाश में!
चहचहाते थे कभी, मीठी प्यालियों में,
उड़ते थे ये कभी, चाय संग सर्द मौसमों में,
अब बची, औपचारिकताएँ चाय में!
फीकी सी हुई, रिश्तों की सुगबुगाहट,
अब कहाँ है, चाय के प्यालियों की आहट,
हो न हो चीनी, कम गई है चाय में!
या जरूरतें! या स्वार्थ! हुई हैं प्रभावी,
या झूठी तरक्की, सब पे हो चुकी हैं हावी,
कम हो चुकी है, गर्माहट चाय में!
फीकी ही सही, चाय, गर्म तो हो मगर,
रिश्ते ना सही, मायने, रिश्तों के तो हों मगर!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-04-2019) को ""रिश्तों की चाय" (चर्चा अंक-3311) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
शुक्रिया आभार ।
Deleteवाह
ReplyDeleteसादर आभार ।
Deleteबिखरते जा रहे रिश्तों से अब आत्मीयता की उष्मा भी कम होती जा रही है ! चाय का रूपक बहुत अच्छा लगा ! सार्थक सृजन के लिए बधाई सिन्हा साहेब !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteवाह बहुत ही सुंदर चाय के माध्यम से रिश्तों के बदलते स्वरूप को बखूबी वर्णन किया है आपने।
ReplyDeleteफीकी सी हुई, रिश्तों की सुगबुगाहट,
अब कहाँ है, चाय के प्यालियों की आहट,
हो न हो चीनी, कम गई है चाय में!
अप्रतिम ।
आभारी हूँ ।
Deleteचहचहाते थे कभी, मीठी प्यालियों में,
ReplyDeleteउड़ते थे ये कभी, चाय संग सर्द मौसमों में,
अब बची, औपचारिकताएँ चाय में!
बहुत खूब आदरनीय पुरुषोत्तम जी | रिश्तों में बढती उदासीनता और स्नेह की गर्माहट की कमी को बहुत ही सार्थकता से लिखा आपने | सादर शुभकामनायें और बधाई |
आपके आशीर्वचनों हेतु आभारी हूँ आदरणीया।
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