और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
मन के कोलाहल, क्या सुन पाओगे?
उठते है जो शोर, कदापि ना सह पाओगे,
बवंडर है, इसमें ही फ़ँस जाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
मन के आईने में, अक्श ही देखोगे,
बेदाग सा दामन, कहाँ खुद का पाओगे,
सच का सामना, कैसे कर पाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
असह्य सी होती हैं, रातों की चीखें,
अंधियारों में, कौन भला किसी को टोके,
वो चीख, भला कैसे सुन पाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
चुप्पी साधे, रहता हूँ मन को बांधे,
कितने गिरह, मन की इस गठरी में डाले,
गाँठें मन की, कैसे छुड़ा पाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
मन के कोलाहल, क्या सुन पाओगे?
उठते है जो शोर, कदापि ना सह पाओगे,
बवंडर है, इसमें ही फ़ँस जाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
मन के आईने में, अक्श ही देखोगे,
बेदाग सा दामन, कहाँ खुद का पाओगे,
सच का सामना, कैसे कर पाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
असह्य सी होती हैं, रातों की चीखें,
अंधियारों में, कौन भला किसी को टोके,
वो चीख, भला कैसे सुन पाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
चुप्पी साधे, रहता हूँ मन को बांधे,
कितने गिरह, मन की इस गठरी में डाले,
गाँठें मन की, कैसे छुड़ा पाओगे!
और न अब कहना, कि चुप क्यूँ रहते हो....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
बेहतरीन रचना आदरणीय 🙏
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/116.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय राकेश जी। आभारी हूँ ।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी।
Deleteवाह बहुत सुन्दर ¡
ReplyDeleteगहरे एहसास लिए बहुत सुंदर सृजन ।
शुक्रिया आभार आदरणीया ।
Deleteबहुत सुन्दर आदरणीय
ReplyDeleteसादर
आदरणीया अनीता जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।
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