स्नेह के इस किनारे, पलती है इक तलब!
रोज सुबह, जगती है एक प्याले की तलब,
और होते हो तुम, बिल्कुल सामने,
विहँसते दो नैन, दैदीप्यमान इक रूप लिए,
सुबह की, उजली किरण सी धूप लिए,
हाथों में प्याले, थोड़े उलझे से लट,
स्नेह के इस किनारे...
रोज है, इस उजाले की तलब!
अतीत हुए पल, व्यतीत हुए संग सारे कल,
अरसो, संग-संग तेरे बरसों बीते,
पल हास-परिहास के, नित प्यालों में रीते,
मधुर-मधुर, मिश्री जैसी मुस्कान लिए,
स्नेह भरे, विस्तृत से वो लघु-क्षण,
स्नेह के इस किनारे...
रोज है, इसी हाले की तलब!
होते रहे परिस्कृत, तिरोहित जितने थे पथ,
पुरस्कृत हुए, कामनाओं के रथ,
पुनःपरिभाषित होते रहे, सारे दृष्टि-पथ,
मौसम के बदलते हुए, परिधान लिए,
खुशबु है, हर प्यालों की अलग,
स्नेह के इस किनारे...
रोज है, इस प्याले की तलब!
स्नेह के इस किनारे, पलती है इक तलब!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
रोज सुबह, जगती है एक प्याले की तलब,
और होते हो तुम, बिल्कुल सामने,
विहँसते दो नैन, दैदीप्यमान इक रूप लिए,
सुबह की, उजली किरण सी धूप लिए,
हाथों में प्याले, थोड़े उलझे से लट,
स्नेह के इस किनारे...
रोज है, इस उजाले की तलब!
अतीत हुए पल, व्यतीत हुए संग सारे कल,
अरसो, संग-संग तेरे बरसों बीते,
पल हास-परिहास के, नित प्यालों में रीते,
मधुर-मधुर, मिश्री जैसी मुस्कान लिए,
स्नेह भरे, विस्तृत से वो लघु-क्षण,
स्नेह के इस किनारे...
रोज है, इसी हाले की तलब!
होते रहे परिस्कृत, तिरोहित जितने थे पथ,
पुरस्कृत हुए, कामनाओं के रथ,
पुनःपरिभाषित होते रहे, सारे दृष्टि-पथ,
मौसम के बदलते हुए, परिधान लिए,
खुशबु है, हर प्यालों की अलग,
स्नेह के इस किनारे...
रोज है, इस प्याले की तलब!
स्नेह के इस किनारे, पलती है इक तलब!
उत्तम..!!
ReplyDeleteआभार आदरणीय ।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-10-2019) को "सबका अटल सुहाग" (चर्चा अंक- 3492) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अटल सुहाग के पर्व करवा चौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय
Deleteअतीत हुए पल, व्यतीत हुए संग सारे कल,
ReplyDeleteअरसो, संग-संग तेरे बरसों बीते,
पल हास-परिहास के, नित प्यालों में रीते,
मधुर-मधुर, मिश्री जैसी मुस्कान लिए,
स्नेह भरे, विस्तृत से वो लघु-क्षण,
स्नेह के इस किनारे...
रोज है, इसी हाले की तलब!
बहुत ही प्यारी रचना पुरुषोत्तम जी अपने जीवन साथी के निस्वार्थ स्नेह और आत्मीयता को समर्पित इस रचना में कृतज्ञता के जो भाव अपने पिरोये हैं , वे सुखी गृहस्थी में संजीवनी के समान हैं | ये साथ अक्षुण हो, यही दुआ और कामना है | आप दोनों को सुहाग पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया रेणु जी। आपकी जीवन भी सुखमय हो।
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