गाहे-बगाहे,
सुुुधि किसकी आ जाए!
गूंजी है ये, किसकी ॠचाएँ?
सुध-बुध सी खोई, है सारी दिशाएँ,
पंछी नादान, उड़ना न चाहे,
उसी ओर ताके, झांके,
गाहे-बगाहे!
जाने-अन्जाने,
सुुुधि किसकी आ जाए!
चितचोर वो, चित वो चुराए,
कोई डोर खींचे, वो पतंग सा उड़ाए!
गाए रिझाए, मन को सताए,
अँखियों से, नींदेें चुराए,
गाहे-बगाहे!
चाहे-अनचाहे,
सुुुधि किसकी आ जाए!
क्यूँ मन रोए, सुध-बुध खोए,
फैैैैलाए पंखों को, कहीं उड़ न पाए,
दिशाहीन, नील-नभ की राहें,
बरबस, मन भरमाए,
गाहे-बगाहे!
देखे-अनदेखे,
सुुुधि किसकी आ जाए!
तन्हा रहे, हाथों में हाथ गहे,
गूंज वही, सूनी राहों में साथ लिए,
है कौन, हर पग साथ रहे,
संग कही, लिए जाए,
गाहे-बगाहे!
बिन-बुलाए,
सुुुधि किसकी आ जाए!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
सुुुधि किसकी आ जाए!
गूंजी है ये, किसकी ॠचाएँ?
सुध-बुध सी खोई, है सारी दिशाएँ,
पंछी नादान, उड़ना न चाहे,
उसी ओर ताके, झांके,
गाहे-बगाहे!
जाने-अन्जाने,
सुुुधि किसकी आ जाए!
चितचोर वो, चित वो चुराए,
कोई डोर खींचे, वो पतंग सा उड़ाए!
गाए रिझाए, मन को सताए,
अँखियों से, नींदेें चुराए,
गाहे-बगाहे!
चाहे-अनचाहे,
सुुुधि किसकी आ जाए!
क्यूँ मन रोए, सुध-बुध खोए,
फैैैैलाए पंखों को, कहीं उड़ न पाए,
दिशाहीन, नील-नभ की राहें,
बरबस, मन भरमाए,
गाहे-बगाहे!
देखे-अनदेखे,
सुुुधि किसकी आ जाए!
तन्हा रहे, हाथों में हाथ गहे,
गूंज वही, सूनी राहों में साथ लिए,
है कौन, हर पग साथ रहे,
संग कही, लिए जाए,
गाहे-बगाहे!
बिन-बुलाए,
सुुुधि किसकी आ जाए!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 05 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीया दीदी
Deleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteसहृदय आभार आदरणीया
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (0६ -१०-२०१९ ) को "बेटी जैसा प्यार" (चर्चा अंक- ३४८०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सादर आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी ।
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