काश!
होता दो किनारों वाला,
मेरा आकाश!
न होता, ये असीम फैलाव,
न जन्म लेती तृष्णा,
कुछ कम जाते,
भले ही, कामना रुपी ये तारे,
जो होते, आकाश के दो किनारे!
न बढ़ती पिपासा,
न होती, किसी भरोसे की आशा,
बिखरती न आशा,
न फैलती, गहरी सी निराशा,
अनबुझ न होती, ये पहेली,
कुछ ही तारों से,
भर जाती, ये मेरी झोली,
बिखरने न पाते,
टूटकर, अरमां के सितारे,
अपरिमित चाह में,
तकता न मैं,
बिन किनारों वाला,
अपरिचित सा, ये आकाश!
इक असीम फैलाव,
जो खुद ही,
ढूंढ़ता है, अपना किनारा,
वो दे क्या सहारा?
काश!
होता दो किनारों वाला,
मेरा आकाश!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
होता दो किनारों वाला,
मेरा आकाश!
न होता, ये असीम फैलाव,
न जन्म लेती तृष्णा,
कुछ कम जाते,
भले ही, कामना रुपी ये तारे,
जो होते, आकाश के दो किनारे!
न बढ़ती पिपासा,
न होती, किसी भरोसे की आशा,
बिखरती न आशा,
न फैलती, गहरी सी निराशा,
अनबुझ न होती, ये पहेली,
कुछ ही तारों से,
भर जाती, ये मेरी झोली,
बिखरने न पाते,
टूटकर, अरमां के सितारे,
अपरिमित चाह में,
तकता न मैं,
बिन किनारों वाला,
अपरिचित सा, ये आकाश!
इक असीम फैलाव,
जो खुद ही,
ढूंढ़ता है, अपना किनारा,
वो दे क्या सहारा?
काश!
होता दो किनारों वाला,
मेरा आकाश!
बहुत ही सुन्दर शब्दों की सजाबट, भावनाओं की अभिब्यक्त|
ReplyDeleteविनय झा
सादर आभार आदरणीय विनय जी।
Deleteजो खुद ही छोर ढूंढे वो क्या सहारा बने
ReplyDeleteउचित बात है
सुंदर रचना के लिए बधाई।
नदी के भी दो किनारे होते हैं लेकिन मिलने को तो वो तरसते हैं।
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉 लोग बोले है बुरा लगता है
बहुत-बहुत धन्यवाद रोहितास जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीया दी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२० -१०-२०१९ ) को " बस करो..!! "(चर्चा अंक- ३४९४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
शुक्रिया आदरणीया ।
Deleteदो किनारे का आकाश वाह
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया ।
Deleteबहुत ही खूबसूरत ख्याल और शब्द .... शानदार सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद सदा जी।
Deleteकाश शब्द में ही मानव की अनेक अभिलाषाएँ छुपी होती हैं, जिसे पूर्ण कर पाना कभी संभव नहीं है।
ReplyDeleteभावपूर्ण शब्दों से सजी सुंदर रचना।
हृदयतल से आभार पथिक जी। स्वागत है आपका।
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